रूह अफजा का नाम किसने रखा? जानें कोई क्यों नहीं बना पाया इसके जैसा शरबत

12 Apr 2025

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर इस वक्त 'रूह अफजा' ट्रेंड कर रहा है. वजह यह है कि योग गुरु रामदेव ने एक वीडियो में पतंजलि जूस और शरबत का प्रचार करते हुए 'शरबत जिहाद' जैसी टिप्पणी कर दी, जिसके बाद लोग इसे 'रूह अफजा' से जोड़ने लगे.

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इस टिप्पणी का नतीजा ये हुआ #RoohAfza X ट्रेंड कर रहा है. लोग इस ब्रांड के साथ  फोटो भी शेयर कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग ये भी कह रहे हैं  रूह अफजा उनके बचपन की याद है, उसके खिलाफ कमेंट बर्दाश्त नहीं करेंगे.

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ऐसे में आइए जानते हैं 100 साल से भी ज्यादा पुराने, गहरे लाल रंग के इस शरबत 'रूह अफजा' से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें.

'रूह अफजा का अर्थ होता है-आत्मा को ताजगी देने वाला. यह नाम एक मशहूर उर्दू किताब 'मसनवी गुलज़ार-ए-नसीम' से लिया गया था, जिसे लखनऊ के प्रसिद्ध लेखक पंडित दया शंकर ‘नसीम’ ने लिखा था...

साल था 1907… दिल्ली की भीषण गर्मी लोगों की जान लेने लगी थी. इसी हालात को देखते हुए हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने एक ऐसा शरबत तैयार करने की ठानी, जिसे लोग रोजाना गर्मी में पी सकें और राहत महसूस करे.

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बस यहीं से जन्म हुआ 'रूह अफजा' का. दरअसल, गर्मी की वजह से बीमार पड़ रहे लोगों को हकीम अब्दुल मजीद रूह अफजा की खुराक देने लगे. लू और गर्मी से शरीर को बचाने में रूह अफजा बेहद शानदार साबित हुआ.

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हकीम अब्दुल मजीद ने साल 1906 में पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में एक छोटे से यूनानी क्लीनिक की नींव रखी, जिसका नाम था- हमदर्द, यानी 'दुख का साथी'. यह शरबत लोगों के बीच इतनी तेजी से लोकप्रिय हुआ कि हमदर्द की पहचान पूरे देश में फैल गई.

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बाद में जब रूह अफजा की लोकप्रियता आसमान छूने लगी, तो कई ब्रांड्स ने इसका मुकाबला करने की कोशिश की. कई लोगों ने इसके जैसा शरबत तैयार करने की कोशिश भी की, लेकिन वो रूह अफजा जैसा स्वाद और खुशबू नहीं ला सके.

एक इंटरव्यू में हमदर्द के सीईओ हमीद अहमद ने खुलासा किया था कि रूह अफजा की रेसिपी सिर्फ तीन लोगों को ही पता है, और ये रेसिपी 1907 में जैसे बनाई गई थी, वैसी ही आज भी इस्तेमाल हो रही है.

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