टाइम ट्रैवल से जुड़ी तमाम कहानियां लोगों के सामने आई हैं. कुछ में तो सबूत तक पेश किए गए. हालांकि इनकी पुष्टि नहीं हो सकी है.
जबकि कुछ कहानियां ऐसी भी हैं, जो हमेशा ही चर्चा में रहती हैं. इनकी बार बार लोग बात करते हैं. आज हम एक ऐसी ही कहानी के बारे में बात करने वाले हैं.
ये कहानी अतीत में दिखे एक शख्स की है. इसका नाम सर्जेई पोमोनारेंको था. जो 23 अप्रैल 2006 में यूक्रेन की राजधानी कीव में घूमता हुआ दिखा.
इसने पुराने जमाने के कपड़े पहने हुए थे और साथ में एक म्यूजियम-पीस कैमरा लिए हुए था. जो दिखने में ब्रांड न्यू लग रहा था.
उसने एक पहचान पत्र भी लिया हुआ था. जिस पर लिखा था कि वो एक सोवियत नागरिक है. जबकि सोवियत संघ तो एक दशक पहले ही ढह गया था.
बाद में दावा किया गया कि उसके कैमरा में फिल्म को जांचकर्ताओं ने डेवलप किया और इसमें कीव की जो तस्वीरें दिखीं, उसमें जगह बिलकुल वैसी दिख रही थी, जैसी वो 1950 के दशक में दिखा करती थी.
पोनोमारेंको ने दावा किया कि उसका जन्म 1932 में हुआ था और वो वास्तव में 1950 के दशक में रह रहा था. लेकिन फिर उसे 2006 में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
उसने बताया कि वो एक 'घंटे के आकार की चीज' की तस्वीर ले रहा था, तभी सब कुछ बदल गया. इस घंटे वाली चीज को बाद में कुछ लोगों ने Die Glocke बताया.
ऐसी अफवाह है कि इस काल्पनिक टाइम मशीन को दूसरे विश्व युद्ध के अंतिम दिनों में SS के लिए बनाया गया था. ये हिटलर की क्रूर काम करने वाली सेना थी.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, तभी से ऐसा कहा जाता है कि पोनोमारेंको अतीत से भविष्य में आया था.
शख्स के कैमरा रोल में दिखी एक ब्लर तस्वीर घंटे के आकार की चीज की थी, जो 1950 के कीव में हवा में लटक रही थी.
फोटोग्राफिक विशेषज्ञ वादिम पोस्नर को न तो तस्वीरों में और न ही कैमरे में कोई अनियमितता दिखी. मनोविज्ञानी पारलो कुत्रिकोव को भी पोनोमारेंको की कहानी में कोई खामी नहीं दिखी.
कहानी में झोल ये था कि इसे साबित करने वाला कोई पुख्ता सबूत नहीं था. पोनोमारेंको कुछ दिनों बाद खुद ही गायब हो गया.
पुलिस के पास उसके कैमरे की तस्वीरें रह गई थीं. 2012 में आई यूक्रेनी डॉक्यूमेंट्री 'एलियंस' में सबूत के तौर पर कुछ तस्वीरें दिखाई गईं.
ऐसा कहा जाता है कि वो दो बार भविष्य में आया था. उसने अपनी गर्लफ्रेंड को 2050 के कीव की तस्वीर भेजी थी. इसमें बैकग्राउंड में ऊंची इमारतें नजर आ रही थीं.
हालांकि उसकी कहानी की आज तक पुष्टि नहीं हो पाई है. अब आगे ऐसा होना और भी मुश्किल है क्योंकि रूस के साथ जारी युद्ध के चलते यूक्रेन की तमाम इमारतों और दस्तावेजों का नामोनिशान मिट गया है.