भारतीय स्पेस सेंटर इसरो का चंद्रयान-3 चांद पर बस पहुंचने ही वाला है. देश-दुनिया की नजरें बेसब्री से इसपर टिकी हुई हैं.
चांद को आपने धरती से देखा होगा. रोज रात को चमकता हुआ चांद बेहद खूबसूरत लगता है लेकिन पास से देखा जाए तो चांद पर अंधेरा है और खूब सारे गड्ढे.
चंद्रमा की सतह से टकराकर ही सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक पहुंचती है. इसी वजह से चांद हमें चमकता हुआ दिखाई देता है. चांद की खुद की कोई रोशनी नहीं है.
चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने हाल ही में चांद की सतह की कुछ तस्वीरें शेयर ही हैं जिसमें गड्ढे ही गड्ढे नजर आ रहे हैं. आइए आज जानते हैं इसके पीछे का कारण-
चांद पर कई उल्कापिंड गिरते रहते हैं. इनके गिरने से गड्ढे (Crater) बनते हैं. इन्हें इम्पैक्ट क्रेटर (Impact Crater) भी कहते हैं.
चंद्रमा पर करीब 14 लाख गड्ढे हैं. 9137 से ज्यादा क्रेटर की पहचान की गई है. 1675 की तो उम्र भी पता की गई है. लेकिन वहां हजारों गड्ढे हैं.
चांद पर गड्ढों की वजह सिर्फ उल्कापिंड ही नहीं है बल्कि यह गड्डे कुछ ज्वालामुखी विस्फोट की वजह से भी बने हैं.
नासा ने चंद्रमा पर सबसे बड़ा गड्ढा 17 मार्च 2013 को देखा था. जब एक 40 किलोग्राम का पत्थर चांद की सतह से 90 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से टकराया था. यह काफी बड़ा गड्डा था.
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चांद पर मि्टटी-पानी न होने की वजह से यह गड्ढे पटते नहीं हैं. वहीं, धरती पर कुछ सालों में यह गड्ढे भर जाते हैं. इनमें पानी भर जाता है या पेड़-पौधे उग आते हैं.
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चंद्रमा पर सबसे बड़ा गड्ढा दक्षिणी ध्रुव के पास है. इसे पार करने के लिए आपको इसके अंदर करीब 290 किलोमीटर चलना पड़ेगा.
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चांद के दक्षिणी धुव पर भी कई गड्ढे हैं लेकिन वहां रोशनी नहीं है और अभी तक इस जगह जाने में किसी भी देश का मिशन कामयाब नहीं हुआ है.
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अगर भारत का चंद्रयान साउथ पोल के छोर पर पहुंचता है तो भारत इस जगह पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा.