रात 3 बजे घर से भागकर बने थे संन्यासी, तस्वीरों में देखें अनिरुद्ध से कैसे बने प्रेमानंद महाराज

13 Dec 2023

Credit: instagram

वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज का हर कोई भक्त है. उनके कीर्तिन और ज्ञान वाली बातें लोगों को काफी मोटिवेट करती हैं. प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से वृंदावन पहुंचते हैं.

वृंदावन वाले महाराज

Credit: instagram

प्रेमानंद महाराज का जन्म अखरी गांव, सरसौल ब्लॉक, कानपुर, उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण (पांडेय) परिवार में हुआ था और उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था.

पांडेय परिवार में हुआ जन्म

Credit: instagram

घर का माहौल भक्तिमय, अत्यंत शुद्ध और शांत होने के कारण उनका संतों की तरफ शुरू से ही काफी झुकाव था. वे हमेशा भक्ति सेवा में लगे रहते थे.

Credit: instagram

जब प्रेमानंद महाराज 9वीं क्लास में थे, तब उन्होंने सन्यासी बनने का फैसला किया था और रात में 3 बजे घर से भाग गए थे. नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा लेने के बाद उनका नाम आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी रखा गया था.

Credit: instagram

प्रेमानंद महाराज ने दीक्षा के बाद उन्होंने अपने जीवित रहने के लिए केवल आकाशवृत्ति को स्वीकार किया, जिसका अर्थ है बिना किसी व्यक्तिगत प्रयास के केवल भगवान की दया से प्रदान की गई चीजों को स्वीकार करना.

Credit: instagram

आध्यात्मिक साधक के रूप में, उनका अधिकांश जीवन गंगा नदी के तट पर बीता क्योंकि उन्होंने कभी भी आश्रम के पदानुक्रमित जीवन को स्वीकार नहीं किया.

Credit: instagram

वह भूख, कपड़े या मौसम की परवाह किए बिना गंगा के घाटों (हरिद्वार और वाराणसी के बीच अस्सी-घाट और अन्य) पर घूमते रहे. भीषण सर्दी में भी उन्होंने गंगा में तीन बार स्नान करने की अपनी दिनचर्या को कभी नहीं छोड़ा.

Credit: instagram

वह कई दिनों तक बिना भोजन के उपवास करते थे और उनका शरीर ठंड से कांपता था लेकिन वह ध्यान में पूरी तरह से लीन रहते थे.

Credit: instagram

एक दिन बनारस में एक पेड़ के नीचे ध्यान करते समय, श्री श्यामाश्याम की कृपा से वह वृन्दावन की महिमा की ओर आकर्षित हो गए और फिर एक संत की प्रेरणा ने उन्हें वृंदावन पहुंचा दिया.

Credit: instagram

वृंदावन पहुंचकर उनकी प्रारंभिक दिनचर्या में वृन्दावन परिक्रमा और श्री बांकेबिहारी के दर्शन शामिल थे. बांके बिहारीजी के मंदिर में उन्हें एक संत ने बताया कि उन्हें श्री राधावल्लभ मंदिर भी अवश्य देखना चाहिए.

Credit: instagram

मंदिर के दर्शन के अगले दिन जब वह वृन्दावन परिक्रमा कर रहे थे तब एक सखी एक श्लोक गाते हुए परिक्रमा कर रही थी. महाराज जी ने जब उनसे इसका अर्थ समझाने को कहा तो सखी ने कहा इसका अर्थ समझने के लिए आपको राधावल्लभी बनना होगा.

Credit: instagram

बस फिर क्या था प्रेमानंद महाराज दीक्षा के लिए पूज्य श्री हित मोहित मराल गोस्वामी जी से संपर्क किया और दीक्षा ले ली. 

Credit: instagram

महाराज जी 10 वर्षों तक अपने सद्गुरु देव की निकट सेवा में रहे और उन्हें जो भी कार्य दिया जाता था, उसे पूरी निष्ठा से करते हुए उनकी सेवा करते थे.

Credit: instagram

जल्द ही अपने सद्गुरु देव की कृपा और श्री वृंदावनधाम की कृपा से, वह श्री राधा के चरण कमलों में अटूट भक्ति विकसित करते हुए सहचरी भाव में पूरी तरह से लीन हो गए और राधा रानी की सेवा में लग गए.

Credit: instagram