लाश पकड़कर नदी पार कर गए थे तुलसीदास, ऐसे बने महान संत

लाश पकड़कर नदी पार कर गए थे तुलसीदास, ऐसे बने महान संत

सावन शुक्ल सप्तमी को तुलसीदास जयंती मनाई जाती है. कल तुलसीदास जयंती है. आज उनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा आपको बताते हैं.

बचपन में तुलसीदास का नाम रामबोला था. कहते हैं कि तुलसीदास की पत्नी रत्नावती बहुत सुंदर थीं और तुलसीदास उन्हें बहुत प्रेम करते थे.

एक बार रत्नावती अपने मायके चली गईं तो तुलसीदास ये दूरी बर्दाश्त नहीं कर पाए. उन्होंने एक ऐसा काम किया, जिससे उनकी पत्नी नाराज हो गईं.

श्रावण मास की एक रात तुलसीदास को रत्नावती की याद सताने लगी. उन्होंने फौरन अपनी पत्नी से मिलने का मन बना लिया.

वह बारिश-तूफान से लड़ते हुए किसी तरह गंगा नदी के तट तक पहुंचे, लेकिन उफनती नदी पार करने वाला एक भी नाविक उन्हें नहीं मिला.

तब तुलसीदास को वहां नदी में अचानक एक तैरती लाश दिखाई दी. तुलसीदास ने उस लाश को पकड़ा और उसके सहारे नदी पार की.

ससुराल पहुंचने के बाद तुलसीदास को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी पत्नी के कमरे तक कैसे पहुंचें.

क्यों नाराज हुईं पत्नी?

तब उन्होंने खिड़की से लटकते एक सांप की पूंछ रस्सी समझकर पकड़ ली और पत्नी के कमरे में दाखिल हो गए.

तुलसीदास ने जब अपनी पत्नी को मिलन के इस सफर की कहानी सुनाई तो वह बेहद नाराज हो गई.

अपने पति का अपमान करते हुए उन्होंने कहा, ‘अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति। नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत।।’

मतलब- 'हड्डी और मांस के इस शरीर से इतना प्रेम. अगर इतना ही प्रेम तुमने राम से किया होता तो ये जीवन सुधर जाता.'

यह सुनते ही तुलसीदास का अंतर्मन जाग उठा. उन पर राम के नाम का ऐसा असर पड़ा कि आगे चलकर उन्होंने रामचरित मानस की रचना की.