कई बार हमें सुनने को मिलता है कि कल तक जो इंसान आसमान की ऊंचाइयों में था, आज उसकी आर्थिक स्थिति गर्त में है.
प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में बताया है कि कब और किस स्थिति में इंसान का विनाश हो जाता है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं, 'जिस इंसान के लक्ष्य में केवल धन हो जाएगा. वो बाहर से जितना भी समझदारी करे. लेकिन उसकी राक्षस प्रवृति झलक ही जाएगी.'
प्रेमानंद महाराज का कहना है, 'धन की प्रधानता इंसान को राक्षस बना देती है. धन की लालच में भाई-भाई को मार डालता है.'
जिस इंसान का एक ही लक्ष्य हो कि कैसे मिले बस जैसे मिले. हमें बस धन प्राप्त करना है. उसे कभी शांति नहीं मिलती है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि ऐसा कोई नहीं है जिसका अंतिम लक्ष्य धन हो और धन प्राप्त करने के बाद वह सुखी हो गया.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं, 'भारत में भी ऐसे कई लोग हुए हैं जो जैसे चमके उसी तरह फ्यूज भी हो गए. जब तक उसका पुण्य कर्म काम करता है, तब तक वह सुखी रहता है.'
रुपये की बदौलत दोष करके आजाद भी रहोगे. लेकिन कब तक. जब तक कर्म का सही न्यायाधीश दंड नहीं दे देता है. वो जिस दिन दंड देगा, उस दिन कोई नहीं बचा सकता है.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं, धन कमाओ, लेकिन धर्म पूर्वक. अधर्म का पैसा उस इंसान को ही नहीं बल्कि उसके परिवार को भी नष्ट कर देता है.