18 Apr 2025
Aajtak.in
देवों के देव महादेव, जिन्हें भोलेनाथ, शंकर, नटराज, महाकाल जैसे अनेक नामों से जाना जाता है, सनातन धर्म में पंचदेवों में एक प्रमुख स्थान रखते हैं. भगवान शिव की महिमा अपरंपार है.
उनकी पूजा जितनी सरल है, उतनी ही प्रभावशाली भी मानी जाती है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी जटिल कार्य की आवश्यकता नहीं होती है.
केवल सच्चे मन से अर्पित किया गया एक लोटा शुद्ध जल और बेलपत्र ही उन्हें प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है.
आपने अक्सर देखा होगा कि अधिकतर शिवलिंगों की जलहरी का मुख उत्तर दिशा की ओर होता है. यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा और शांति का प्रतीक मानी जाती है. लेकिन क्या आपने कभी दक्षिणमुखी शिवलिंग के बारे में सुना है?
जब शिवलिंग का मुख दक्षिण दिशा की ओर होता है, तो वह दक्षिणमुखी शिवलिंग कहलाता है. ऐसी मान्यता है कि इस रूप में भगवान शिव का अघोर स्वरूप प्रकट होता है, जो संहारक और रक्षक दोनों रूपों में कार्य करता है.
इस विशेष स्वरूप में शिव का तेज और प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है, इसलिए दक्षिणमुखी शिवलिंग का सीधा संबंध मृत्यु और उसके बाद की यात्रा से भी जोड़ा जाता है.
पूरे संसार में केवल उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग ही ऐसा शिव मंदिर है, जहां शिवलिंग दक्षिणमुखी है. इसे दुनिया का इकलौता दक्षिणमुखी शिवलिंग कहा जाता है.
मान्यता है कि इस शिवलिंग के केवल दर्शन से ही यमराज प्रसन्न हो जाते हैं, और व्यक्ति को मृत्यु के बाद दुख देने वाली योनियों से मुक्ति मिल जाती है.
ज्योतिषी के अनुसार दक्षिणमुखी शिवलिंग का पूजन और दर्शन करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं. कुंडली के दोष, विशेषकर कालसर्प दोष, पितृदोष और शनि के प्रभाव कम होते हैं.