आपके आस-पास कई ऐसे लोग होंगे, जिनका एकमात्र लक्ष्य जीवन में धन कमाना होता है. फिर चाहे वो धर्म के रास्ते से आए या फिर अधर्म के रास्ते.
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वृंदावन वाले प्रेमानंद महाराज ने ऐसे लोगों के बारे में एक बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कही है. आइए इसे ध्यान से समझते हैं.
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि जिस इंसान का लक्ष्य सिर्फ धन कमाना होता है, वो राक्षस के समान है. उसकी राक्षसी प्रवृत्ति साफ झलक जाती है.
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धन की प्रधानता इंसान को राक्षस बना देती है. इस एक चीज के लिए भाई भाई से बैर कर लेता है. तो ये राक्षस होना नहीं तो फिर क्या है.
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प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि संसार में ऐसा कोई इंसान नहीं है, जो कह सके कि धन मिलने के बाद उसे सुख और शांति दोनों मिल गईं.
अधर्म के मार्ग से आने वाला धन कुछ देर के लिए अच्छा तो लगता है, लेकिन ऐसा धन आपके मन की शांति और सुख एकदम छीन लेता है.
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यदि किसी इंसान को पैसों के साथ कमरे में बंद कर दिया जाए तो कुछ घंटों में वह स्वयं स्वीकार कर लेगा कि मुझे भोजन-पानी चाहिए, रुपया नहीं.
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प्रेमानंद जी कहते हैं कि हमें भोग सामग्री मिलती है, इसलिए पैसे का महत्व है. भोग सामग्री से हमें सुख मिलेगा, बस यही भ्रम हमें नष्ट कर रहा है.