मुर्गे-बकरे की बलि से प्रसन्न होते हैं भगवान? जानें क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज

23 Apr 2025

Aajtak.in

कई धार्मिक अनुष्ठानों में पशुओं की बलि लोक परंपराओं का एक अभिन्न हिस्सा रही हैं. कई लोग इसे देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी होने पर आभार प्रकट करने का एक माध्यम मानते हैं.

आज भी कई लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए इस प्रथा को निभा रहे हैं. इसमे मुर्गे या बकरे जैसे पशुओं की बलि दी जाती है. और फिर उनके मांस को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.

हालाँकि, समय के साथ इस परंपरा को लेकर समाज में मतभेद उभरने लगे हैं. कुछ लोग इसे धार्मिक आस्था का हिस्सा मानते हैं, जबकि अन्य इसे पशु क्रूरता और कुप्रथा करार देते हैं.

इसी विषय पर प्रसिद्ध संत श्री प्रेमानन्द महाराज ने भी अपने विचार प्रकट किए हैं. आइए जानते हैं उनके विचार.

आप मां को जगत जननी कहते हैं, लेकिन क्या एक सच्ची मां कभी अपने ही बच्चों की बलि को स्वीकार कर सकती है? क्या वह अपने बच्चों का अमंगल कर सकती है? नहीं, मां तो करुणा और ममता की प्रतीक होती है. 

क्या कहते हैं प्रेमानन्द महाराज?

अगर आप सच में देवी को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो खुद तपस्या कीजिए. नवरात्रि के नौ दिन निर्जला व्रत रखिए. कठिन साधना कीजिए. लेकिन किसी और प्राणी को कष्ट देकर की गई पूजा, भक्ति नहीं कहलाती है.

बलि एक प्रकार की हिंसा है और याद रखिए हिंसा से कभी भी ईश्वर प्रसन्न नहीं होते हैं.

प्रेमानन्द जी का मानना है कि अब समय आ गया है जब हमें अपनी पुरानी परंपराओं पर पुनर्विचार करना चाहिए. वे कहते हैं कि ऐसी कोई भी परंपरा जो जीवों को कष्ट पहुंचाती है, जो हिंसा को बढ़ावा देती है उसे बंद करना होगा.