प्रेमानंद महाराज ने बताया, ये लक्षण बताता है आप भक्त हैं या नहीं

हम सुनते आए हैं कि भक्त ऐसे होते हैं. भक्त ये करते हैं. भक्त इस तरह का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके बावजूद हमारे मन में एक प्रश्न रहता है कि भक्त के क्या-क्या लक्षण होते हैं.

प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में बताया है कि भक्त के अंदर किन गुणों का होना जरूरी है. इंसान किस स्थिति में भक्त हो सकता है.

प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि जो इंसान प्रतिकूलता सहन नहीं कर पाता है, वह कभी भी भक्त नहीं हो सकता है.

प्रेमानंद महाराज का कहना है कि जो इंसान प्रतिकूलता सहन नहीं कर पा रहा है, वह भगवत रस को कभी भी धारण नहीं कर सकता है.

इसे एक उदाहरण से समझाते हुए प्रेमानंद महाराज कहते हैं, 'कुम्हार मिट्टी को खोदकर लाता है. इसके बाद इसकी पिटाई करता है. इसमें जल डालकर रौंदता है.'

मिट्टी को रौंदने के बाद उसे अपने अनुकूल बनाकर चाक पर चढ़ाता है. चाक पर उसे जो मन होता है, वो बनाता है. जो मन आया, वो आकार देता है. आकार देने के बाद धूप में उसे सुखाता है.

इससे भी उसे तसल्ली नहीं मिलती है तो वो उसे चूल्हे पर पकाता है. उसके बाद उसे बाजार में ले जाकर बेचता है. एक पात्र पक्का रस रखने योग्य तब बना जब उसे इस तरह से गुजारा गया.

एक भक्त के रूप में हम प्रेम पाने चले तो क्या हमें प्रतिकूलता नहीं मिलेगी? क्या हमारा अपमान नहीं होगा? निंदा नहीं होगी? हमें सब सहना होगा.