ईश्वर से जुड़ी हर बात जीवन में कुछ न कुछ सीखाकर जाती है. साथ ही कोई बड़ी शिक्षा भी देती है.
जीवन में सच्चा ज्ञान और शिक्षा देने वाले दो ग्रंथ है रामायण और महाभारत. कहते हैं कि हर किसी को इन दोनों ग्रथों को जीवन में एक बार तो पढ़ना चाहिए.
रामायण से हमें रिश्तों की सीख मिलती है कि एक पुत्र, पति, पिता कैसा होना चाहिए. वहीं, महाभारत की सबसे बड़ी सीख गीता.
लेकिन, गीता को अगर ध्यान से पढ़ा जाए तो श्रीमद्भगवद्गीता में हर समस्या का समाधान मिलता है.
तो आइए कथावाचक जयाकिशोरी से गीता की उन बातों के बारे में जानते हैं कि जिससे जीवन की समस्याओं का डटकर सामना करने में मदद मिलेगी.
एक प्रसंग के मुताबिक, कौरवों के मन पांडवों के लिए नफरत तो थी लेकिन इतनी नहीं थी, जितनी शकुनी मामा ने भर दी थी. इसलिए, मायने ये रखता है कि आपकी संगत कैसी है.
वहीं, अगर शकुनी मामा की जगह श्रीकृष्ण होते तो वो कौरवों को सीखाते कि नफरत से ज्यादा प्रेम में ताकत है. इसलिए, जीवन में अच्छी संगत ही अपनाएं. यानी अपने जीवन में शकुनी को न अपनाकर श्रीकृष्ण को अपनाएं.
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि, हमेशा सही काम करना चाहिए और जो भी हम काम करते हैं, उसे पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिए.
यदि आप ईमानदारी से काम करेंगे तो हो सकता है कि शुरुआत में सफलता न मिले लेकिन, कभी न कभी सफलता जरूर मिलेगी.
दुर्योधन ने अहंकार की वजह से पांडवों से उनका राज्य छीनने की कोशिश की. लेकिन, उसी अहंकार के कारण उसे पांडवों से पराजित होना पड़ा था. इसलिए, कभी अहंकार नहीं दिखाना चाहिए.