16 Aug 2025
Photo: Ai Generated
जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को 56 भोग लगाने की परंपरा है. कहते हैं कि सात दिन तक पर्वत को उठाए रखने के कारण श्रीकृष्ण ने कुछ भी नहीं खाया था.
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बारिश थमने के बाद ब्रजवासियों ने सात दिन के उपवास की भरपाई और भगवान के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए 56 तरह के व्यंजन तैयार कर अर्पित किए. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
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लेकिन भगवान कृष्ण की असली भक्ति भाव सिर्फ व्यंजनों में नहीं है, उनके लिए भोग का स्वाद तभी पूर्ण होता है, जब उसमें भक्ति, श्रद्धा और आत्मीयता का भाव मिला हो.
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महाभारत काल में दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के स्वागत में शाही छप्पन भोग सजाया, लेकिन कृष्ण वहां न जाकर भक्त विदुर के घर पहुंचे.
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लेकिन द्रौपदी चीरहरण और पांडवों के वनवास से विदुर और उनकी पत्नी बहुत दुखी थे. इसलिए उन्होंने घर में शोक के कारण स्वादिष्ट भोजन बनाना ही बंद कर दिया था.
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जब श्रीकृष्ण उनके घर आए तो उनके घर साग और सूखी रोटी थी. उन्होंने श्रीकृष्ण को वही परोस दिया. लेकिन श्रीकृष्ण के सामने ऐसा भोजन देख विदुर की पत्नी का मन भर आया.
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तब विदुर की पत्नी श्रीकृष्ण का स्वरूप देख भक्ति में ऐसी लीन हुईं कि उन्होंने जल्दबाजी में कृष्ण को खाने के लिए केले का छिलका ही दे दिया.
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श्रीकृष्ण ने बड़े ही आनंद से केले का छिलका खा लिया. इशके बाद कृष्ण मुस्कुराकर बोले- जैसा स्वाद इन छिलकों में था, वैसा गूदे में नहीं.
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राजभोग ठुकराकर विदुर के घर भोजन करने की बात पर दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के प्रति नाराजगी भी जताई.
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तब श्रीकृष्ण ने कहा कि भोजन भाव, अभाव या प्रभाव से होता है. न तुझमें भाव है और न मुझमें अभाव.
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