By Aajtak.in
ओडिशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ की 146वीं रथ यात्रा का शुभारंभ हो चुका है. यह रथ यात्रा 20 जून से 1 जुलाई तक चलेगी.
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जगन्नाथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलराम व बहन सुभद्रा को रथ में बैठाकर यात्रा निकाली जाती है.
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भगवान जगन्नाथ को जिस रथ में बैठाकर यह यात्रा निकाली जाती है, उसकी खासियतें आपने शायद पहले कभी नहीं सुनी होंगी.
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भगवान जगन्नाथ का रथ नीम की लकड़ी का बना होता है और इसे बनाने के लिए लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन शुरू होता है.
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सामग्री जुटाने के बाद रथ को बनाने का काम अक्षय तृतीया से शुरू हो जाता है. रथ को बनाने में करीब 2 महीने का समय लगता है.
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भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ जिस रथ पर सवार होते हैं, उसमें न तो कोई धातु और न ही किसी कील का इस्तेमाल होता है.
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यात्रा में 3 रथ होते हैं. इनमें सबसे ऊंचा जगन्नाथ का रथ होता है. इसका नाम 'नंदीघोष' होता है, जिसकी ऊंचाई करीब 45 फुट होती है.
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बलराम के रथ का नाम 'तालध्वज' और बहन सुभद्रा के रथ का नाम 'दर्प दलन' होता है. उनकी उंचाई जगन्नाथ के रथ से कम होती है.
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं और ये अन्य दोनों रथों की तुलना में बड़ा और आकर्षक होता है.
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जब ये रथ तैयार हो जाता है तो पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है, जो इन रथों की पूजा करते हैं.
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फिर सोने की झाड़ू से रथ का मंडप साफ होता है. रथ यात्रा के रास्तों को भी ऐसे ही साफ किया जाता है. इसे 'छर पहनरा' कहते हैं.