शिव-पार्वती को मिलाने के लिए जब इस ऋषि ने तोड़ा था विंध्य पर्वत का अहंकार

25 July 2025

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हर साल शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है. यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.

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भगवान शिव, गहन तपस्या में लीन रहने वाले वैरागी हैं. इसलिए उनका विवाह हमेशा से एक रहस्य रहा है. बहुत से लोग सिर्फ इतना जानते हैं कि शिवजी का विवाह पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती से हुआ था.

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लेकिन इस प्रेम कथा के और भी कई पहलू हैं- जैसे कि विंध्य पर्वत का अहंकार, ऋषि अगस्त्य का सम्मान, और दक्षिण भारत में धर्म का प्रसार.

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भगवान शिव से विवाह करने के पार्वती को 108 बार जन्म लेना पड़ा था. उन्होंने 10वें जन्म में ही महादेव को पति के रूप में प्राप्त किया था. दोनों के विवाह से जुड़ी एक प्रचलित कथा भी है.

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दरअसल, भोले बाबा की बारात बड़ी अद्वितीय थी, जिसमें भूत-प्रेत, अघोरी, योगी और देवता सभी शामिल थे. स्वयं शिव अपने औघड़ रूप में,भस्म लगाए और नागों से सजे हुए थे.

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महादेव की बारात हिमालय पहुंची थी. विवाह समारोह के दौरान, हिमालय पर एकत्रित असुर-देवता और ऋषियों के भार से पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा. सृष्टि की स्थिरता खतरे में पड़ गई.

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तब शिव ने महर्षि अगस्त्य से दक्षिण दिशा में जाकर अपने तपोबल से पृथ्वी को संतुलित करने का आग्रह किया. ऋषि ने आज्ञा स्वीकार की, और उनके वहां जाने से पृथ्वी का संतुलन बना. 

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इस प्रकार, शिव और पार्वती का मिलन केवल दो आत्माओं का नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय संतुलन, ऊर्जा और चेतना का संगम था .

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हालांकि दक्षिणी छोर पर जाने के लिए विंध्य पर्वत की ऊंचाई अगस्त्य ऋषि के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा थी, जिसे अपनी ऊंचाई पर बहुत अहंकार था.

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इसलिए अगस्त्य ऋषि ने विंध्य पर्वत से झुकने का अनुरोध किया, ताकि वे दक्षिण दिशा में जा सकें. विंध्य पर्वत ने ऋषि का सम्मान करते हुए झुककर उन्हें रास्ता दे दिया.

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ऋषि ने विंध्य से तब तक झुके रहने का वचन लिया था, जब तक वे वापस न लौटें. लेकिन ऋषि अगस्त्य दक्षिण भारत में बस गए और कभी वापस नहीं लौटे, जिसके कारण विंध्य पर्वत आज भी झुका हुआ है.

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