23 apr 2025
Aajtak.in
जीवन का एक अटल सत्य है – मृत्यु. हर व्यक्ति जानता है कि एक न एक दिन उसे यह शरीर त्यागना पड़ेगा.
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा का विस्तार से वर्णन किया गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मृत्यु के पश्चात आत्मा यमलोक की ओर प्रस्थान करती है.
अधिकांश लोग जीवन भर यही प्रयास करते हैं कि उन्हें मृत्यु के बाद नरक न भोगना पड़े, इसलिए वे पुण्य कमाते हैं, दान-पुण्य करते हैं. लेकिन क्या केवल व्रत, पूजा और दान से नरक के भय से बचा जा सकता है?
गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य को मृत्यु के बाद अपने अच्छे और बुरे दोनों कर्मों का फल भोगना पड़ता है.
परंतु गरुड़ पुराण के 9वें अध्याय में भगवान विष्णु ने पक्षीराज गरुड़ को एक विशेष उपाय बताया है – यदि मृत्यु के समय मनुष्य के पास चार पवित्र वस्तुएं होती हैं, तो यमदूत उसके पास नहीं आते और आत्मा को स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है.
हिंदू धर्म में तुलसी को देवी का स्वरूप माना गया है. तुलसी की मंजरी से युक्त होकर जो व्यक्ति प्राण त्याग करता है वह यमलोक नहीं जाता है. इसलिए मरने वाले व्यक्ति को तुलसी के पौधों के पास लेटा देना चाहिए. साथ ही उसके माथे पर तुलसी की मंजरियों को और मुंह में तुलसी के पत्ते को रख देना चाहिए.
इस प्रकार से मृत्यु होने पर व्यक्ति यमलोक नहीं जाता है. इन्हें स्वर्ग जाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है.
यह एक सामाजिक मान्यता है कि मृत्यु के वक्त व्यक्ति के मुंह में गंगाजल डाल दिया जाता है. गंगा भगवान विष्णु के चरणों से निकली है और पापों का नाश करने वाली है. गंगाजल धारण कर जो प्राण त्यागता है वह स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है.
पुराण में यह भी कहा गया है कि दाह संस्कार के बाद अस्थि को गंगाजल में प्रवाहित करने से जबतक व्यक्ति की अस्थि गंगा में रहती है तबतक व्यक्ति स्वर्ग में सुख से रहता है.
विष्णु जी ने कहा कि उनके पसीने से उत्पन्न तिल बेहद पवित्र होता है. मृत्यु के समय मरने वाले के हाथों से तिल का दान करवाना चाहिए. इसके दान से असुर, दैत्य, दानव आदि भाग जाते हैं. साथ ही मरने वाले के सिरहाने में काले तिल को रखना चाहिए, इससे मुक्ति प्राप्त होती है.
कुश, एक विशेष प्रकार की घास है जो धार्मिक कार्यों में उपयोग होती है और अत्यंत पवित्र मानी जाती है. मृत्यु के समय तुलसी के पौधे के पास कुश का आसन बिछाकर व्यक्ति को सुला देना चाहिए.
इस प्रकार जिनकी मृत्यु होती है और यदि उस व्यक्ति का श्राद्ध करने वाला भी कोई न हो, तब भी वह बैकुंठ प्राप्त करते हैं.