17 Apr 2025
Aajtak.in
गरुड़ पुराण सनातन धर्म के 18 महापुराणों में से एक है. माना जाता है कि गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ के बीच बातचीत के जरिए लोगों को नीति, नियम, ज्ञान, तप, यज्ञ आदि से जुड़े संदेश दिए गए हैं.
साथ ही मृत्यु के बाद के संस्कार, आत्मा और तमाम लोकों का जिक्र किया गया है. गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद शरीर के अंतिम संस्कार से लेकर पिंडदान और तेरहवीं तक का महत्व बताया गया है.
आइए जानते हैं कि क्यों मृत्यु के पश्चात 10 दिन तक पिंडदान किया जाता है?
गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति की आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के बीच ही रहती है. इस दौरान आत्मा भूख और प्यास से तड़पती रहती है और रोती है.
इस बीच 10 दिनों तक आत्मा को उसके परिजनों द्वारा जो पिंडदान किया जाता है, उससे उसका सूक्ष्म शरीर बनता है जो एक अंगूठे के बराबर के आकार का होता है.
पुराण के पहले अध्याय में बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा को पाप और पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए एक प्रेत शरीर मिलता है.
पहले दिन के पिंडदान से सिर बनता है, दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है.
इस पिंडदान से भूख और प्यास से प्रेरित जीव ग्यारहवें और बारहवें दिन भोजन करता है. पिंडदान के बाद तेरहवीं के दिन जब मृतक के परिजन 13 ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं तो आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
माना जाता है कि जिस व्यक्ति के परिजन उसके लिए पिंड दान नहीं करते, ऐसे लोगों की आत्मा को यमदूत 13वें दिन घसीटते हुए यमलोक तक ले जाते हैं.