आचार्य चाणक्य ने ऐसे आदमी का वर्णन किया है जो इंसान पढ़-लिखकर भी किसी मूर्ख समान होता है.
चाणक्य के अनुसार, ऐसा आदमी न सिर्फ खुद को बल्कि अपने साथ वालों को भी बर्बाद कर देता है.
शास्त्रों को जानने वाला होने पर भी मनुष्य लोक-व्यवहार को नहीं पहचान सकता है, वह पढ़ा-लिखा होने पर भी मूर्ख के समान है.
जो मनुष्य लोक-चरित्र को नहीं समझ सकता, उसके संबंध में यही कही जा सकता है कि वह शास्त्र को पूर्ण रूप से न जानने के कारण मूर्ख के समान है.
चाणक्य के अनुसार, शास्त्र ज्ञान से मनुष्य में चतुरता आती है और वह मनुष्य को समझने में भी सफल हो जाता है.
चाणक्य के अनुसार, जिस इंसान को शास्त्र का अच्छा ज्ञान हो और लोक व्यवहार समझता हो, वह हमेशा आगे रहता है.
चाणक्य कहते हैं कि समाज में आदमी अपने व्यवहार से ही काफी कुछ पा लेता है और खो भी देता है.
आचार्य चाणक्य के अनुसार, अगर किसी आदमी का आचरण समाज में ठीक नहीं होता है, वह परेशान रहता है.
जबकि जो आदमी समाज के अनुरूप ही अपना आचरण रखता है, विनम्र होता है, वह हमेशा खुशहाल रहता है.