आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में ऐसे लोगों का वर्णन किया है जो साग-सब्जी में घूमने वाली करछी के समान हैं.
आचार्य चाणक्य के इस कथन का अर्थ है कि वह ऐसे लोग संसार में किसी भी काम के नहीं होते हैं.
जो लोग वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी आत्मा-परमात्मा के संबंध में कुछ नहीं जानते हैं वह एक करछी की तरह हैं.
चाणक्य के अनुसार, ऐसी करछी जो स्वादिष्ट साग-सब्जी में तो घूमती है लेकिन उसे उसके स्वाद का कतई भी ज्ञान नहीं होता है.
चाणक्य के अनुसार, शास्त्रों के अध्ययन की सार्थकता इसी बात में है कि जो कुछ पढ़ा जाए, उसका सार ग्रहण करके मनुष्य जीवन में उतारे.
अगर मनुष्य ऐसा नहीं करता है तो उसका जीवन व्यर्थ है. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसा व्यक्ति फिर किसी भी काम का नहीं है.
चाणक्य के अनुसार, जो मनुष्य शास्त्रों के अनुरूप ही जीवन में आगे बढ़ता है वह हमेशा खुशहाल रहता है.
वहीं चाणक्य के अनुसार, इंसान को शास्त्रों के ज्ञान के साथ-साथ हमेशा विनम्र होना चाहिए. विनम्रता ही उसे जीवन में सफलता दिलाती है.
जो इंसान विनम्र होता है वह दुश्मन को भी अपना बना लेता है. हमेशा ऐसे आदमी का सम्मान होता है.