25 Sep 2024
By- Aajtak.in
आचार्य चाणक्य के अनुसार, समाज में कभी पिता को अपने पुत्र की तारीफ नहीं करनी चाहिए.
चाहे पुत्र कितना ही गुणवान हो, उसके बावजूद भी पिता को दूसरों के सामने उसकी सराहना नहीं करनी चाहिए.
इंसान के लिए जैसे खुद की तारीफ करना अच्छा नहीं होता है, ऐसे ही पिता को गुणी पुत्र की तारीफ से बचना चाहिए.
पिता का कर्तव्य होता है कि समय-समय पर पुत्र को उत्साहित करे लेकिन उसके गुणों का उल्लेख समाज में न करे.
दूसरों के सामने अपने बेटे की तारीफ करना आत्ममंथन जैसा ही है, आप लोगों के बीच हंसी का पात्र बन सकते हैं.
पिता की इस गलती की वजह से समाज में मजाक उड़ाया जा सकता है जिसका परिवार पर मानसिक तौर पर गलत असर भी हो सकता है.
अगर किसी का पुत्र गुणवान है तो जरूरी नहीं कि समाज में सबको उसके गुणों के बारे में बताया जाए.
चाणक्य के अनुसार, अगर बार-बार समाज में पुत्र की तारीफ की जाए तो लोग बातों पर भरोसा करना छोड़ सकते हैं.
जिस घर में गुणवान पुत्र होता है उसका नाम खुद ही समाज में रोशन हो जाता है. इसके लिए तारीफ की जरूरत नहीं होती है.