आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में उस स्थिति के बारे में बताया है जब मनुष्य दूसरों के पापों की सजा पाता है.
चाणक्य के मुताबिक धरती पर चार प्रकार के मनुष्य हैं जो जीवन में दूसरों के कामों की वजह से परेशानी में फंसते हैं.
चाणक्य नीति के छठे अध्याय के 9वें श्लोक में आचार्य ने बताया है कि किस प्रकार के मनुष्य को पापों का फल भोगना पड़ता है.
चाणक्य बताते हैं कि राजा को राष्ट्र के पापों का फल भोगना पड़ता है.
जब राजा अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करता, तब राज्य की जनता उसके खिलाफ हो जाती है. ऐसे में राजा को जनता के कामों का फल भोगना पड़ता है.
राजा के पाप पुरोहित भोगता है.
पुरोहित, मंत्री या सलाहकार जब राजा को गलत सलाह देते हैं तो राजा के फैसले से होने वाले नुकसान के जिम्मेदार भी वही होते हैं.
जीवन साथी के पाप उसके पार्टनर को भोगने पड़ते हैं.
अगर कोई पत्नी गलत काम करती है तो उसका फल उसके पति को भोगना पड़ता है और इसी प्रकार पति के गलत कामों का असर पत्नी पर भी होता है.
शिष्य के पाप गुरु भोगते हैं.
शिष्य द्वारा किए गए पाप का वहन गुरु को करना पड़ता है. 'अधीन' द्वारा किए गए पाप का भागी स्वामी होता है.