सत्ता की कविता से केवल इतनी रिश्तेदारी है... जब कुमार विश्वास ने पढ़ीं ये पंक्तियां

22 Mar 2024

By अतुल कुशवाह

मशहूर कवि कुमार विश्वास इन दिनों कवि सम्मेलनों के साथ 'अपने-अपने राम' सेशन में रामकथा का वाचन भी करते हैं.

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'कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है' कविता लिखने वाले कुमार विश्वास के शो में भारी संख्या में लोग सुनने पहुंचते हैं.

कुमार विश्वास ने प्यार की कविताएं लिखीं और पढ़ीं. इसी के साथ उन्होंने सम सामयिक विषयों को भी मुद्दा बनाया.

मौन रहो तो सबसे बेहतर साथ रहो आभारी है, सत्ता की कविता से केवल इतनी रिश्तेदारी है सारी दुविधा प्रतिशत पर है सच कितना बोला जाए, गूंगे सिखा रहे हैं हमको मुंह कितना खोला जाए.

सियासत में तेरा खोया या पाया हो नहीं सकता तेरी शर्तों पे गायब या नुमाया हो नहीं सकता भले साजिश में गहरे दफ्न मुझको कर भी दो पर मैं, सृजन का बीज हूं मिट्टी में जाया हो नहीं सकता.

पुरानी दोस्ती को इस नई ताकत से मत तोलो ये संबंधों की तुरपाई है षड्यंत्रों से मत खोलो मेरे लहजे की छेनी से गढ़े कुछ देवता जो तब मेरे लफ्जों पे मरते थे वो अब कहते हैं मत बोलो.

वे बोले दरबार सजाओ वे बोले जयकार लगाओ वे बोले हम जितना बोलें तुम केवल उतना दोहराओ, वाणी पर इतना अंकुश कैसे सहते हम कबीर के वंशज चुप कैसे रहते.

वे बोले जो मार्ग चुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं, मुक्तिवाह्य संकल्प गुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं, हमसे जो जयघोष सुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं, हम सबने जो ख्वाब बुना था ठीक नहीं था बदल रहे हैं, इतने बदलावों में मौलिक क्या कहते.

हमने कहा शत्रु से जूझो थोड़े और वार तो सह लो, वे बोले ये राजनीति है तुम भी इसे प्यार से सह लो, हमने कहा उठाओ मस्तक खुलकर बोले खुलकर कह लो, बोले इस पर राजमुकुट है जो भी चाहे जैसे सह लो, इस गीली ज्वाला में हम कब तक दहते.