24 Feb 2024
By अतुल कुशवाह
शायर मिद्हत उल अख्तर का मूल नाम मोहम्मद मुख्तार है. उनका जन्म 15 मई 1945 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ. वे आधुनिक उर्दू गजल के प्रसिद्ध शायर हैं. वे मुशायरों में भी शिरकत करते हैं.
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जाने वाले मुझे कुछ अपनी निशानी दे जा रूह प्यासी न रहे आंख में पानी दे जा जिसकी आगोश में कट जाएं हजारों रातें मेरी तन्हाई को छूकर वो कहानी दे जा.
शायद मेरी फरियाद सुनाई नहीं देती कुदरत जो मुझे हुक्मे रिहाई नहीं देती ख्वाबों की तिजारत में यही एक कमी है चलती है दुकां खूब कमाई नहीं देती.
हजार आंखों से रोया तेरी जुदाई में न होगा मेरी तरह कोई खुद नुमाई में खता हमारी नहीं फुलजड़ी ही गीली थी भरी है आग अभी तक दिया सलाई में.
समंदर का समंदर पी चुका हूं मगर मैं फिर भी प्यासा ही रहा हूं वो मेरी राह का पत्थर बना था मैं उसकी राह का जलता दिया हूं.
तुझे पाकर कभी देखा नहीं है नहीं मालूम तू है या नहीं है बहुत कम लोग हैं पहचान वाले यहां हर जिस्म में चेहरा नहीं है.
मैं हूं दीवार पे लिखा हुआ कब से लेकिन कोई पढ़ता नहीं रस्ते से गुजरने वाला जा रहा है तेरे होंठों की तमन्ना लेकर जिंदगीभर तेरी आवाज पे मरने वाला.
दश्त से मैं जो अपने घर आया मेरे दिल में खुदा उतर आया सारी दुनिया है राह पर मेरी जब से मैं तेरी राह पर आया.
हुनर दिया भी नहीं ले लिया अंगूठा भी बड़े कमाल की फनकार है ये दुनिया भी बुला रहा हूं सभी को कि मेरे साथ आएं न आया कोई तो मैं चल पड़ूंगा तन्हा भी.