इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो... दुष्यंत कुमार के चुनिंदा शेर

10 Nov 2023

By अतुल कुशवाह

दुष्यंत कुमार का जन्म यूपी के बिजनौर के राजपुर नवाद में 1 सिंतबर 1933 को हुआ था. वे भोपाल आकाशवाणी में असिस्टेंट प्रोड्यूसर भी रहे. उनकी रचनाएं आज संसद से सड़क तक गूंजती हैं.

शायर दुष्यंत कुमार

Photo: Social Media

रहनुमाओं की अदाओं पे फिदा है दुनिया इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारो कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो.

वो बात कितनी भली है जो आप करते हैं सुनो तो सीने की धड़कन रबाब हो जाए बहुत करीब न आओ यकीं नहीं होगा ये आरजू भी अगर कामयाब हो जाए.

इन ठिठुरती उंगलियों को इस लपट पर सेंक लो धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं सिर्फ शायर देखता है कहकहों की असलियत हर किसी के पास तो ऐसी नजर होगी नहीं.

ये शफक शाम हो रही है अब और हर गाम हो रही है अब जिस तबाही से लोग बचते थे वो सरेआम हो रही है अब.

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है आज शायर ये तमाशा देखकर हैरान है खास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए ये हमारे वक्त की सबसे सही पहचान है.

जाने किस किस का खयाल आया है इस समुंदर में उबाल आया है हम ने सोचा था जवाब आएगा एक बेहूदा सवाल आया है.

सिर से सीने में कभी पेट से पांव में कभी इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है सैर के वास्ते सड़कों पे निकल आते थे अब तो आकाश से पथराव का डर होता है.

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है माथे पे उसके चोट का गहरा निशान है देखे हैं हमने दौर कई अब खबर नहीं पांव तले जमीन है या आसमान है.