जिगर मुरादाबादी का मूल नाम अली सिकंदर था. उनका जन्म 6 अप्रैल 1890 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में हुआ था. उनका रंग-ए-कलाम और तरन्नुम सबसे अलग रहा.
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बहुत हसीन सही सोहबतें गुलों की मगर वो जिंदगी है जो कांटों के दरमियां गुजरे जिन्हें कि दीदा-ए-शाइर ही देख सकता है वो इंकलाब तेरे सामने कहां गुजरे.
नजर मिला के मेरे पास आ के लूट लिया नजर हटी थी कि फिर मुस्कुरा के लूट लिया शिकस्ते हुस्न का जल्वा दिखा के लूट लिया निगाह नीची किए सर झुका के लूट लिया.
हमको मिटा सके ये जमाने में दम नहीं हमसे जमाना खुद है जमाने से हम नहीं शिकवा तो एक छेड़ है लेकिन हकीकतन तेरा सितम भी तेरी इनायत से कम नहीं.
ये इश्क नहीं आसां इतना ही समझ लीजे इक आग का दरिया है और डूब के जाना है हम इश्क के मारों का इतना ही फसाना है रोने को नहीं कोई हंसने को जमाना है.
लब तरसते हैं इल्तिजा के लिए हाथ उठते नहीं दुआ के लिए मुझको जो चाहो नासेहो कह लो कुछ न कहना उसे खुदा के लिए.
लाखों में इंतिखाब के काबिल बना दिया जिस दिल को तुमने देख लिया दिल बना दिया पहले कहां ये नाज थे ये इश्वा ओ अदा दिल को दुआएं दो तुम्हें कातिल बना दिया.
इश्क में लाजवाब हैं हम लोग माहताब आफताब हैं हम लोग तू हमारा जवाब है तन्हा और तेरा जवाब हैं हम लोग.
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफा याद अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद.