17 Mar 2024
By अतुल कुशवाह
शायर अबरार अहमद काशिफ का जन्म 3 दिसंबर 1968 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ. वे देश-दुनिया में होने वाले मुशायरों में शिरकत करते हैं. उनकी शेर अक्सर सोशल मीडिया में वायरल होते हैं.
Photo: facebook/pexels
मेरा अरमां मेरी ख्वाहिश नहीं है ये दुनिया मेरी फरमाइश नहीं है मैं तेरे ख्वाब वापस कर रहा हूं मेरी आंखों में गुंजाइश नहीं है.
खिजां के रुत में भी ताजा गुलाब छोड़े हुए मैं आ गया तेरी पलकों पे ख्वाब छोड़े हुए बहुत दिनों से कोई सच नहीं कहा मैंने जमाना हो गया मुझको शराब छोड़े हुए.
दिया जला के सभी बाम ओ दर में रखते हैं और एक हम हैं उसे रहगुजर में रखते हैं समंदरों को भी मालूम है हमारा मिजाज हम तो पहला कदम ही भंवर में रखते हैं.
तरीके और भी हैं इस तरह परखा नहीं जाता, चरागों को हवा के सामने रखा नहीं जाता मुहब्बत फैसला करती है पहले चंद लम्हों में, जहां पर इश्क होता है वहां सोचा नहीं जाता.
अगर तुम हो तो घबराने की कोई बात थोड़ी है जरा सी बूंदाबांदी है बहुत बरसात थोड़ी है ये राहे इश्क है इसमें कदम ऐसे ही उठते हैं मुहब्बत सोचने वालों के वश की बात थोड़ी है.
मंजिलों का कौन जाने रहगुजर अच्छी नहीं उसकी आंखें खूबसूरत हैं नजर अच्छी नहीं ********* अब तो लगता है कि आ जाएगी बारी मेरी किसने दे दी तेरी आंखों को सुपारी मेरी.
ये मंजर देखकर साहिल की हैरानी नहीं जाती मुझे छूकर भी कोई मौजे तूफानी नहीं जाती परेशानी अगर है तो परेशानी का हल भी है परेशां हाल रहने से परेशानी नहीं जाती.
बोलने का नहीं चुप रहने का मन चाहता है ऐसे हालात में तू लुत्फ ए सुखन चाहता है एक तो रूह भी काफूर सिफत है अपनी और अब जिस्म भी बेदाग कफन चाहता है.