दीवाना लिपट जाए कदमों से तो क्या होगा... हफीज बनारसी के चुनिंदा शेर

12 May 2024

By अतुल कुशवाह

शायर हफीज बनारसी का मूल नाम मुहम्मद अब्दुल हफीज था. उनका जन्म 20 मई 1933 को उत्तर प्रदेश के बनारस में हुआ था. उनकी शायरी बेहद पसंद की जाती है.

शायर हफीज बनारसी

Photo: Social Media/ Pexels

लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला जिगरदारों ने मकतल को भी मयखाना बना डाला सितम ढाते हो लेकिन लुत्फ का एहसास होता है इसी अंदाज ने दुनिया को दीवाना बना डाला.

ये और बात कि लहजा उदास रखते हैं खिजां के गीत भी अपनी मिठास रखते हैं कहां भिगोए कोई अपने खुश्क होंठों को ये दौर वो है कि दरिया भी प्यास रखते हैं.

वो तो बैठे रहे सर झुकाए हुए जादू उनकी निगाहों के चलते रहे मुश्किलों ने बहुत राह रोकी मगर जिनको मंजिल की धुन थी वो चलते रहे.

क्या जुर्म हमारा है बता क्यों नहीं देते मुजरिम हैं अगर हम तो सजा क्यों नहीं देते तुमको तो बड़ा नाजे मसीहाई था यारो बीमार है हर शख्स दवा क्यों नहीं देते.

जो नजर से बयान होती है क्या हसीं दास्तान होती है जिसको छू दो तुम अपने कदमों से वो जमीं आसमान होती है.

इक शगुफ्ता गुलाब जैसा था वो बहारों के ख्वाब जैसा था पढ़ लिया हमने हर्फ हर्फ उसे उसका चेहरा किताब कैसा था.

इक मोहब्बत भरी नजर के सिवा और क्या अहले दिल की कीमत है एक दुनिया तबाह कर डाले एक जर्रा में ऐसी ताकत है.

कुछ सोच के परवाना महफिल में जला होगा शायद इसी मरने में जीने का मजा होगा कतरा के तो जाते हो दीवाने के रस्ते से दीवाना लिपट जाए कदमों से तो क्या होगा.