19 March 2024
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बृज में होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है, कहीं फूल होली है, कहीं रंग-गुलाल की होली है तो कहीं लट्ठ मारकर होली मनाने की परम्परा है.
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बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली अपने इसी अनूठे अंदाज के लिए दुनिया भर में जानी जाती है. यहाँ होलिका दहन से पाँच दिन पहले ही यह विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली मनाई जाती है.
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इस होली में महिलायें, जिन्हें हुरियारिन कहते है अपने लट्ठ से हुरियारों को पीटती है और वो अपने सिर पर ढाल रख कर हुरियारिनों के लट्ठ से खुद का बचाव करते हैं.
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इस परंपरा की शुरुआत पाँच हजार साल से भी पहले हुई थी, हमारे धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि जब भगवान कृष्ण बृज छोड़कर द्वारिका चले गये और उसके बाद फिर से जब उनका बरसाना आना हुआ तो उस समय बृज में होली का समय था.
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तब कृष्ण के बिछुड़ने से दुखी राधा और उनकी सखियों ने उनके वापस आने पर अपने गुस्से का इजहार किया. वो सभी चाहती थीं कि कृष्ण कभी उनसे दूर ना हों.
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इसीलिए जब कृष्ण ने उन्हें मनाने की कोशिश की तो राधा और उनकी सखियों ने प्यार भरे अपने गुस्से का इजहार करते हुये कृष्ण के साथ लट्ठ मारकर होली खेली थी.
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तब से लेकर आज तक वही परम्परा चली आ रही है. बरसाना राधारानी का गाँव है और नंदगाँव में नंदबाबा का घर होने की वजह से इसे कृष्ण के गाँव के रूप में भी जाना जाता है.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बरसाना स्थित राधारानी मंदिर और नंदगाँव के नन्दभवन में स्थित मंदिर की सेवा-पूजा का अधिकार गोस्वामी समाज को ही है, इसीलिए गोस्वामी समाज की महिलाओं और पुरुषों के बीच ये विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली खेली जाती है.
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बरसाना में होने वाली लट्ठमार होली में यहाँ की हुरियारिनें राधा की सखी के भाव में होती है और नंदगाँव से होली खेलने बरसाना आने वाले हुरियारे कृष्ण के ग्वाल के भाव में यहाँ आते हैं.
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इस होली में परम्परागत लहंगा-ओढ़नी की पोशाक पहने हुये हरियारिनें अपने हाथों में लट्ठ लिये हुये होती है और हुरियारे बगलबंदी-धोती पहनकर हाथ में ढाल लेकर हुरियारिनों से होली खेलने आते हैं.
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इस होली में परम्परागत लहंगा-ओढ़नी की पोशाक पहने हुये हरियारिनें अपने हाथों में लट्ठ लिये हुये होती है और हुरियारे बगलबंदी-धोती पहनकर हाथ में ढाल लेकर हुरियारिनों से होली खेलने आते हैं.
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