13 Mar 2025
By अतुल कुशवाह
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रंग जिंदगी के हर पहलू में घुल-मिल जाते हैं. शायरी की दुनिया में रंग सिर्फ देखने की चीज नहीं, बल्कि महसूस करने का जरिया हैं. एक ऐसा जादू, जो दिल को छू जाता है और रूह तक बस जाता है.
मैं दूर था तो अपने ही चेहरे पे मल लिया इस जिंदगी के हाथ में जितना गुलाल था. (अमीर कजलबाश)
तू भी देखेगा जरा रंग उतर लें तेरे हम ही रखते हैं तुझे याद कि सब रखते हैं. (इकबाल खावर)
मुंह पर नकाब-ए-जर्द हर इक ज़ुल्फ पर गुलाल होली की शाम ही तो सहर है बसंत की. (लाला माधव राम जौहर)
तमाम रात नहाया था शहर बारिश में वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे. (जमाल एहसानी)
किसी कली किसी गुल में किसी चमन में नहीं वो रंग है ही नहीं जो तेरे बदन में नहीं. (फरहत एहसास)
सैकड़ों रंगों की बारिश हो चुकेगी उसके बाद इत्र में भीगी हुई शामों का मंजर आएगा. (अजीज नबील)
उजालों में छुपी थी एक लड़की फलक का रंग-रोगन कर गई है. (स्वप्निल तिवारी)
गैर से खेली है होली यार ने डाले मुझ पर दीदा-ए-खूं-बार रंग. (इमाम बख्श नासिख)