शाद अजीमाबादी का मूल नाम अली मोहम्मद था. उनका जन्म 8 जनवरी 1846 को बिहार के पटना में हुआ था. अल्लामा इकबाल ने भी उनकी शायरी की तारीफ की थी.
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जो तंग आकर किसी दिन दिल पे हम कुछ ठान लेते हैं सितम देखो कि वो भी छूटते पहचान लेते हैं ब-कद्रे हौसला सहरा ए वहशत छान लेते हैं मुसाफिर हैं सफर के वास्ते सामान लेते हैं.
यही मौका है जमाने से गुजर जाने का क्यों अजल क्या किया सामां मेरे मर जाने का तार हों आंसुओं के आह के हरकारे हों सिलसिला कोई तो उन तक हो खबर जाने का.
हमारी आंखों में अश्कों का आ के रह जाना झुका के सर को तेरा मुस्कुरा के रह जाना निगाहे नाज से साकी का देखना मुझको मेरा वो हाथ में सागर उठा के रह जाना.
अगर मरते हुए लब पर न तेरा नाम आएगा तो मैं मरने से दर गुजरा मेरे किस काम आएगा उन्हें देखेगी तू ऐ चश्मे हसरत वस्ल में या मैं तेरे काम आएगा रोना कि मेरे काम आएगा.
अब भी इक उम्र पे जीने का न अंदाज आया जिंदगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया पीते पीते तेरी इक उम्र कटी उस पर भी पीने वाले तुझे पीने का न अंदाज आया.
हो के खुश नाज हम ऐसों के उठाने वाला कोई बाकी न रहा अगले जमाने वाला कब समझता है कि जीना भी है आखिर कोई शय अपनी हस्ती तेरी उल्फत में मिटाने वाला. (शय- चीज, उल्फत- प्यार)
तेरी जुल्फें गैर अगर सुलझाएगा आंख वालों से न देखा जाएगा थक के आखिर बैठ जाएगा गुबार कारवां मुंह देखकर रह जाएगा.
तमन्नाओं में उलझाया गया हूं खिलौने दे के बहलाया गया हूं हूं इस कूचे के हर जर्रे से आगाह इधर से मुद्दतों आया गया हूं.