सभी पैरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़े और पढ़ाई में काफी आगे हो. इसी चक्कर में आजकल के पैरेंट्स बच्चे को तीन साल या कई मामलों में तो ढाई साल के होते ही स्कूल में दाखिला करा दे रहे.
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बच्चों को इतनी कम उम्र में स्कूल भेजना उनके विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इतनी कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने से उनके मानसिक विकास में बाधा आ सकती है.
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विशेषज्ञ कहते हैं कि जब कम उम्र में ही बच्चे को स्कूल में डाल दिया जाता है तब वो एक विशेष तरह के वातावरण में बंधकर रह जाता है और बाहर की दुनिया एक्सप्लोर नहीं कर पाता. बच्चा एक कंट्रोल वातावरण में रहता है.
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लेकिन वहीं, अगर बच्चे को कम उम्र में स्कूल के बजाए खुले वातारण में रखा जाता है तो वो ज्यादा चीजें सीखता है और उसका दिमाग नई-नई चीजें एक्सप्लोर करता है.
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खुले वातावरण में बच्चे को खेलने-कूदने के लिए पर्याप्त वक्त मिलता है और वो आगे चलकर जिंदगी में ज्यादा खुश रह पाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसे बच्चे आगे चलकर दूसरे बच्चों की तुलना में ज्यादा कॉन्फिडेंट होते हैं.
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फिनलैंड की शिक्षा नीति दुनिया में सबसे अच्छी मानी जाती है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मुताबिक, फिनलैंड के बच्चे 7 साल के होने के बाद ही स्कूल जा सकते हैं.
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इससे उन्हें अपना बचपन जीने का मौका मिलता है और किताबी ज्ञान के लिए वो पूरी तरह तैयार होते हैं. इसके साथ ही फिनलैंड में बच्चों के लिए 9 सालों की शिक्षा ही अनिवार्य है.
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फिनलैंड के स्कूल भी सुबह 9-9:30 के बीच शुरू होते हैं जिससे बच्चों को पर्याप्त सोने और सुबह के सभी काम आसानी से करने में मदद मिलती है.
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भारत की नई शिक्षा नीति 2020 में कहा गया है कि 6 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को पहली कक्षा में नहीं डाला जा सकता.
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि बच्चे को 4 साल से पहले स्कूल में नहीं डालना चाहिए. उनका कहना है कि 3 साल से कम उम्र के बच्चों को तो नर्सरी या केजी में भी नहीं डालना चाहिए.
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