हम जब थिएटर में फिल्म देखने जाते हैं तो अक्सर वहां बैठे स्वादिष्ट पॉपकॉर्न खाने का मन करता है. सिनेमाघरों में लोग हाथों में पॉपकॉर्न के टब लिए सीटों पर अडजस्ट होते नजर आ ही जाते हैं.
जब दुनिया में इतना कुछ खाने को है, ऐसे में थिएटरों में पॉपकॉर्न खाने का यह कल्चर आया कहां से? इतिहास के पन्नों में झांकें तो कभी इसी पॉपकॉर्न ने सिनेमाघरों का अस्तित्व बचाया था.
चार्ल्स क्रेटर्स ने 1885 में पहली बिजनेस पॉपकॉर्न मशीन का आविष्कार किया था. 1920 तक अमेरिका में सड़कों के किनारे, पार्क, ईवेंट, बार समेत हर जगह लोग पॉपकॉर्न खरीदकर खाने लगे.
इस वक्त तक थिएटर में स्नैक के तौर पर पॉपकॉर्न नहीं मिलता था. 1920 के दौरान निकेलोडियन ने ऐसी चीज बनाई जिसकी मदद से हम घर के अंदर कहीं भी मोशन पिक्चर देख सकते थे.
लोगों को यह काफी पसंद आया और धीरे-धीरे प्रचलित होने लगा, जिसके चलते थिएटर के बिजनेस पर मंदी छाने लगी. तब थिएटर मालिकों ने हॉल को नया रूप देने का सोचा जो आम घरों से बेहतर हो.
कुछ समय में ही मूवी थिएटर को काफी आलीशान बना दिया गया ताकि लोग घर में प्रोजेक्शन से फिल्म देखने के बजाए मूवी थिएटर का एक्सपीरिएंस पसंद करें.
किसी महल जैसे दिखने वाले थिएटरों को बनाने वाले इनके मालिक यहां किसी भी तरह की गंदगी नहीं चाहते थे. इस वजह से थिएटरों में किसी भी तरह के खान पान की व्यवस्था नहीं थी.
इन थिएटरों को काफी अच्छा खासा मुनाफा हो रहा था लेकिन 1929 में अमेरिका में आर्थिक मंदी का ऐसा मोड़ आया कि हंसते-खेलते मुनाफा कमाते थिएटर में ताले लगने शुरू हो गए.
इस खराब स्थिति में हर कोई नुकसान झेल रहा था लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जिनके चेहरे पर ऐसे समय में भी मुस्कान थी क्योंकि उनको बचाए रखा था छोटे से पॉपकॉर्न ने.
थिएटर के बाहर प़ॉपकॉर्न बेच रहे लोग थिएटर से ज्यादा मुनाफा कमाने लगे. स्टॉक में इन्वेस्ट करने वाले लोग, बड़े बिजनेस मैन से लेकर बैंक में काम करने वाले लोगों तक ने मंदी में पॉपकॉर्न बेचा.
पॉपकॉर्न स्वादिष्ट होने के साथ-साथ काफी सस्ता भी था. जो भी थिएटर में जाता था वे स्नैक्स में खाने के लिए थिएटर के बाहर से प़ॉपकॉर्न खरीदता और अपने कपड़ों में छुपाकर ले जाता था.
R.J Mekkena वो शख्स है, जिनकी बदौलत ही आज हमें थिएटर में बैठे-बैठे पॉपकॉर्न का स्वाद लेने को मिलता है. Mekkena ने पॉपकॉर्न की रेहड़ी को थिएटर के अंदर लगाना शुरू किया.
धीरे धीरे सभी थिएटरों ने भी इस स्कीम को अपना लिया. गुजरते वक्त के साथ डिमांड इतनी बढ़ी कि धीरे-धीरे पॉपकॉर्न के दाम बढ़ने लग गए लेकिन लोगों ने इन्हें खाना नहीं छोड़ा. पूरी खबर नीचे पढ़ें.