पूर्वांचली राज्यों और शहरों मे छठ का महापर्व बड़ी धूम-धाम और आस्था से मनाया जाता है. हर त्योहर की तरह इस त्योहर की एक स्पेशल और खास डिश है.
इस त्योहार ने ठेकुआ को पूरे देश-दुनिया में मशहूर कर दिया है. हो भी क्यों ना, गेहूं, गुड़ और कुछ मेवों से बनने वाला यह ठेकुआ काफी स्वादिष्ट लगता है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ठेकुआ की शुरूआत कैसे हुई और इसे सबसे पहले कब बनाया गया. साथ ही यह भी जानेंगे कि इसका नाम ठेकुआ क्यों है.
पहला ठेकुआ कब बना यह कहना मुश्किल है लेकिन बिहार, नेपाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह सदियाों से बनाया जा रहा है.
माना जाता है कि "ठेकुआ" नाम क्रिया "ठोकना" से लिया गया है, जिसका हिंदी में अर्थ "हथौड़ा मारना" है.
क्योंकि ठेकुआ के आटे को पारंपरिक रूप से हथौड़े या अन्य भारी वस्तु का उपयोग करके सांचे में दबाया जाता है. इसे ठकुआ, ठेकरी, खजूर और रोठ भी कहा जाता है.
आज से करीब 3700 साल पहले ऋग्वैदिक काल में एक 'अपूप' नामक मिष्ठान का जिक्र है जो स्वाद और बनाने के तरीके में ठेकुआ से मेल खाता है.
ऋग्वैदिक काल के अनुसार, गेहूं के आटे में गुड़, दूध और घी मिलाकर बतौर औषधि मिलाकर बनाया गया था और तब फिर इसे सूर्य की उपासना में भोग के रूप चढ़ाया जाता है.
ठेकुआ का इतिहास बौद्ध काल में भी मिलता है. माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने ज्ञानप्राप्ति के बाद बोधिवृक्ष के आसपास 49 दिनों का उपवास रखा था.
इस दौरान दो व्यापारी वहां से गुजरे और उन्होंने बुद्ध को आटे, घी और मधु (शहद) से बना एक व्यंजन दिया, जिससे उन्होंने अपना उपवास खोला.
यह व्यंजन भी पूरी तरह ठेकुआ से मिलात जुलता है. इनके अनुसार कह सकते हैं कि ठेकुआ वाकई सदियों पुराना मिष्ठान है.