'संसा' से बना समोसा...14वीं सदी में विदेश से पहुंचा था भारत! जानें क्या है समोसे का इतिहास

15 July 2025

Photo: AI-generated

भारत में समोसे को लोग बड़े चाव से खाते हैं और इसका चपपटा टेस्ट लोगों की जुबान पर चढ़ हुआ है. मगर क्या आप जानते हैं कि समोसा विदेशी मेहमान की तरह भारत में आया था और आज भारतीय उसे काफी चाव से खाते हैं.

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दरअसल, समोसे की जड़ें मध्य एशिया और मिडिल ईस्ट तक फैली हुई हैं. 10वीं से 13वीं शताब्दी की अरब-पाक किताबों में इसे संबुसाक , सम्मोसा, संबोसा और संबुसाज के नाम से जाना जाता है.

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ईरानी अबुल-फजल बेहाकी की 11वीं शताब्दी की पुस्तक 'तारीख-ए-बेहागी' में समोसे को 'सम्बोसा' कहा गया है. बताया जाता है कि रईस लोग मांस, घी और प्याज से बने संबोसा के खाते थे.

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समोसे का मूल नाम 'संसा' था. बताया जाता है कि मिडिल एशिया के पिरामिडों को सम्मान देने के लिए ये नाम दिया गया होगा. देखने में समोसे का आकार भी पिरामिड की तरह ही लगता है.

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14वीं सदी में मुहब्बद बिन तुगलक के दरबार में समोसे को पहली बार शाही खाने के तौर पर पेश किया गया था. कुछ दावों के अनुसार, मुगल वंश के आने के बाद ही भारत में समोसे की एंट्री हुई.

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मिडिल ईस्ट के लोग त्रिकोण के आकार में बनने वाले समोसे को सफर के दौरान खाना पसंद करते थे, जल्दी और छटपट बनने की वजह से ही बड़ी तेजी से पूरे साउथ एशिया में फेमस हुआ.

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भारत की तरह ही समोसा साउथ एशिया में प्रचलित हुआ था, लोग इसे अलग-अलग तरीके और नाम से पुकारते हैं. मिडिल एशिया में लोग इसके टेस्ट की वजह से सफर के दौरान खाना पसंद करते थे.

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भारत में भी समोसे को अलग-अलग नाम से पुकारते हैं और बनाने का तरीका भी अलग है, आलू और मटर की चपचटी स्टफिंग आमतौर दिल्ली-यूपी में खाने को मिलती है. 

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हैदराबाद में मीट का कीमा भरकर समोसे को तैयार किया जाता है, जिसे लुखमी कहा जाता है. इसी तरह यूपी, बंगाल, गुजरात और साउथ में अलग-अलग नाम से पुकारते हैं.

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