रूई जैसी सॉफ्ट गुलाबी चमकने वाली कॉटन कैंडी सभी के बचपन का प्यार है. आज भी 'बुढ़िया के बाल' देखकर पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं.
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आपकी गली में भी जब बुढ़िया के बाल वाला आता होगा तो स्वाद लेने के लिए आप भी दौड़ते होंगे.
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आपको यह जानकर हैरानी होगी कि गली-गली बिकने वाले बुढ़िया के बाल हमारे देश के हैं ही नहीं. तो आइए जानते हैं कि यह भारत कैसे पहुंचे-
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कॉटन कैंडी असल में अमेरिका से आई है इसका श्रेय अमेरिका में रहने वाले दातों के डॉक्टर विलियम्स जेम्स मॉरिसन (Williams James Morrison) और एक हलवाई हो जाता है.
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साल 1897 में विलियम्स एक हलवाई से मिले. इसके बाद दोनों से मिलकर एक अनोखी मशीन बनाई जो गर्म चीनी को घुमाते हुए कॉटन कैंडी बनाती थी.
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उनका ये अनूठा अविष्कार कई देशों में फैला और जगह-जगह बच्चों के दिलों की जान बन गया.
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हालांकि, आविष्कार होने के करीबन 7 साल तक लोगों को इसके बारे में पता ही नहीं था फिर एक मेले ने इस मशीन को पहचान दिलाई.
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1907 में विलियम्स St. Louis World Fair में गए. जहां उन्होंने अपनी इस मशीन को दिखाया साथ ही कॉटन कैंडी भी बनाकर दिखाई.
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मशीन बनाने के करीब 7 साल बाद 1907 में विलियम्स जेम्स मॉरिस ने सेंट लुइस वर्ल्ड फेयर (St. Louis World Fair प्रोडक्ट को पहली बार बड़े प्लेटफॉर्म पर दुनिया के सामने रखा.
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यह मशीन सभी को बेहद पसंद आई. अमेरिका में इसे ‘फेयरी फ्लॉस’ (fairy floss) का नाम दिया गया था.
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