पीयूष बंसल का कहना है, उन्होंने 2011 में लेंसकार्ट की शुरुआत की थी. 11 साल पहले इंडिया को चश्मा पहनाने का सपना देखा था. आज वो पूरी दुनिया को चश्मा पहनाने का सपना देख रहे हैं.
लेंसकार्ट के सीईओ और फाउंडर की स्कूलिंग दिल्ली से हुई थी. स्कूल खत्म करने के बाद उन्होंने आईटीटी की तैयारी की, लेकिन एडमिशन नहीं हुआ. पर पीयूष ने हार नहीं मानी. संघर्ष करके, मां-बाप से लड़ कर कनाडा पढ़ने के लिए पहुंच गए.
कनाडा में पढ़ाई के दौरान पीयूष बंसल रिसेप्शनिस्ट की जॉब करने लगे. जहां उनकी मुलाकात कोडिंग करने वाले एक सीनियर से हुई.
कोडिंग सीखने के बाद उन्हें माइक्रोसॉफ्ट में तीन महीने की इंटरशिप करने का मौका मिला. यहां तक कि वो बिग गेट्स के घर भी गए.
पीयूष बताते हैं कि उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट में काम करते हुए बहुत कुछ सीखा. ये भी जाना कि अगर कोई दुनिया बदलना चाहे, तो बदल सकता है. इसलिए उन्होंने अपने देश लौट कर कुछ नया करने की कोशिश की.
पीयूष बंसल का कहना है कि वो जिद्दी इंसान हैं. 2008 में जब वो भारत आए तो उन्होंने पाया कि दुनिया के 40 प्रतिशत ब्लाइंड लोग इंडिया में रहते हैं. इनमें से आधे ऐसे थे, जो चश्मा नहीं पहनते थे. बस यहीं शुरू हुई लेंसकार्ट की जर्नी.
पीयूष ने माइक्रोसॉफ्ट के अनुभव का इस्तेमाल किया. उन्होंने तीन-चार महीने गैराज को ऑफिस बनाने में लगा दिए.
इस दौरान उन्हें को-फाउंडर अमित चौधरी का साथ मिला और आज दोनों किस मुकाम पर हैं, ये शायद ही किसी को बताने की जरूरत है.
कल तक जिन पीयूष बंसल के पास पैसे, घर और बिजनेस कुछ नहीं था. आज वो पीयूष 37 की उम्र में बिजनेस की दुनिया का जाना-माना नाम बन गए हैं.