चहल देंगे 4.25 करोड़... कैसे डिसाइड होता है कि कौन कितने रुपये एलिमनी में देने होंगे?

20 Mar 2025

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बांद्रा फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया है कि 20 मार्च तक यानी आज क्रिकेटर युजवेंद्र चहल और कोरियोग्राफर धनश्री वर्मा तलाक को अंतिम रूप दे दिया जाए.

समझौते के तहत चहल धनश्री वर्मा को 4.75 करोड़ रुपये की एलीमनी (तलाक के बाद दी जाने वाली राशि) देंगे.

उन्होंने पहले ही 2.37 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए हैं. बाकी रकम तलाक के बाद दी जाएगी.

इस बीच आइए आपको बताते हैं कि एलीमनी की रकम कैसे तय होती है.

भारत में एलि‍मनी कई कानूनों से तय होती है. इनमें हिंदू विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम, भारतीय तलाक अधिनियम, मुस्लिम महिला अधिनियम और पारसी विवाह और तलाक अधिनियम शामिल हैं.

कोर्ट एलि‍मनी देने से पहले कई बातों पर ध्यान रखते हैं. जैसे दोनों पति-पत्नी की वित्तीय स्थिति, शादी के दौरान उनका रहन-सहन, शादी की अवधि और बच्चों की कस्टडी (देखभाल) की व्यवस्था.

भारतीय कानून के अनुसार, आर्थिक रूप से कमज़ोर पति या पत्नी को अधिक आय वाले पति या पत्नी से वित्तीय सहायता लेने का अधिकार है. अधिकांश मामलों में, यह सहायता पत्नी को ही मिलती है.

दो तरह की आर्थिक सहायता होती है जो अधिक कमाने वाले पति या पत्नी को आमतौर पर दूसरे को देनी होती है - अंतरिम भरण-पोषण (interim maintenance ) जिसके तहत अदालती कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान राशि दी जाती है.

दूसरा है स्थायी गुजारा भत्ता (permanent alimony)  है, जो फैसला आने के बाद लम्बे समय तक जारी रहती है.

दिल्ली हाई कोर्ट के वकील प्रेम जोशी ने कहा कि "हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 अंतरिम और स्थायी गुजारा भत्ता प्रदान करती है."

या तो पति-पत्नी खुद ही एलिमनी का अमाउंट आपस में तय कर लेते हैं. अगर आपसी सहमति नहीं बनती तो एलिमनी का अमाउंट कोर्ट तय करता है.

गुजारा भत्ता का दावा करने के लिए, पत्नी को न केवल अपनी आय और संपत्ति का सबूत अदालत के सामने पेश करना होगा, बल्कि मासिक खर्चों का सबूत भी पेश करना होता है.

विवादित मामलों में, न्यायालय प्रत्येक मामले की योग्यता के आधार पर गुजारा भत्ता या भरण-पोषण के मुद्दे पर निर्णय लेता है.

असली लड़ाई तब शुरू होती है जब अलग रह रही पत्नी के लिए गुजारा भत्ता तय करने के लिए अदालत में दस्तावेज (आय और संपत्ति का विवरण सहित) जमा किए जाते हैं.

कॉर्पोरेट या सरकारी कर्मचारियों का मामला आमतौर पर पारदर्शी होता है, लेकिन समस्या उन व्यवसायियों के साथ सामने आती है जो खुद को कंगाल दिखाते हैं, भले ही उनके पास कितनी दौलत हो.

इसके परिणामस्वरूप, कई अदालतें जीवन स्तर का अंदाजा भी नहीं लगा पाती हैं. आय और संपत्ति कंपनियों और सहायक कंपनियों और कॉर्पोरेट क्रेडिट कार्ड में छिपी हुई हैं.

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर, न्यायालय को पति और पत्नी दोनों की संपत्तियों के वितरण पर निर्णय लेने का अधिकार है, जिसमें स्त्रीधन, संयुक्त संपत्ति और अन्य संपत्तियां शामिल हैं, जो दम्पति के पास शादी से पहले और उसके दौरान थीं.