30 Apr 2024
Credit: Pexel
1945 के हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु हमलों के बाद कुछ चश्मदीदों ने दावा किया था कि मलबे में कॉकरोच ज़िंदा देखे गए थे. इससे यह धारणा बनी कि कॉकरोच परमाणु हमलों के बाद भी जिंदा रह सकते.
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रिसर्च से पता चलता है कि कॉकरोच 10,000 रैड (रेडिएशन की इकाई) तक की रेडिएशन सह सकते हैं, जो इंसानों के लिए घातक है. रिसर्च कहती है कि इंसान 800 रैड से कम में मर सकते हैं.
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अनुमान था कि हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम ने हवा में 10,300 रेड्स की गामा खुराक मापी थी, जो इंसानों को मारने के लिए पर्याप्त है, लेकिन एक कॉकरोच को नहीं.
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कॉकरोच जैसी प्रजातियों में कोशिकाएं बहुत धीरे-धीरे विभाजित होती हैं.विकिरण सबसे ज्यादा नुकसान तेजी से विभाजित होने वाली कोशिकाओं को करता है.
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कॉकरोच की कोशिकाएं धीरे विभाजित होती हैं, इसलिए उन्हें विकिरण का असर कम नुकसान पहुंचाता है. लेकिन इसके मायने ये नहीं है कि परमाणु हमले के बाद कॉकरोच बच सकता है.
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क्योंकि परमाणु विस्फोट से निकलने वाली गर्मी की तीव्रता कॉकरोच को मार सकती है.विस्फोट के बाद निकली 10 लाख डिग्री सेल्सियस की गर्मी को सहने के बाद कोई जीव का बचना नामुमकिन है.
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हिरोशिमा (15 किलोटन) में, 1 किमी के दायरे में अधिकांश चीजें जलकर राख हो गईं थी. इसलिए परमाणु हमले के बाद कॉकरोच भी नहीं बचेगा. ये जीवबस रेडिएशन के प्रति अपेक्षाकृत अधिक प्रतिरोधी है.