24 Sep 2024
आईआईटी से स्नातक करने के बाद, अधिकांश छात्रों को भारत और विदेशों में अच्छी और उच्च पैकेज वाली नौकरी के प्रस्ताव मिलते हैं और वे और भी बड़ी सफलता प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ते हैं.
लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अलग रास्ता चुनते हैं. यहां हम आपको ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं जिन्होंने आईआईटी पास किया और बाद में साधु बन गए.
महान महाराज का जिनका जन्म 1968 में महान मित्र के रूप में हुआ था. उन्हें स्वामी विद्यानाथानंद के नाम से भी जाना जाता है.
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स्वामी विद्यानाथानंद एक भारतीय गणितज्ञ और रामकृष्ण संप्रदाय के भिक्षु हैं जो वर्तमान में मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में गणित के प्रोफेसर के रूप में काम करते हैं.
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उन्हें हाइपरबोलिक ज्यामिति, ज्यामितीय समूह सिद्धांत, निम्न-आयामी टोपोलॉजी और जटिल ज्यामिति में उनके काम के लिए जाना जाता है.
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उन्होंने 12वीं कक्षा तक कलकत्ता के सेंट जेवियर्स कॉलेजिएट स्कूल में पढ़ाई की फिर संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में 67वीं रैंक (एआईआर) हासिल करने के बाद वे आईआईटी कानपुर चले गए.
स्वामी विद्यानाथानंद शुरू में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन बाद में गणित की ओर रुख किया और 1992 में आईआईटी कानपुर से गणित में मास्टर्स की डिग्री हासिल की.
इसके बाद स्वामी विद्यानाथानंद ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में गणित में पीएचडी कार्यक्रम में दाखिला लिया.
यूसी बर्कले से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1998 में चेन्नई के गणितीय विज्ञान संस्थान में कुछ समय तक काम किया.
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स्वामी विद्यानाथानंद ने हाई सैलरी वाली नौकरी से इनकार कर दिया और 1998 में रामकृष्ण संप्रदाय के भिक्षु बन गए.
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भिक्षु बनने को लेकर उन्होंने कहा कि 'मैं भिक्षु होने का उतना ही आनंद ले रहा हूं जितना कि गणित का'.
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