01 April 2025
जूते की दुकान में बैठकर पढ़ाई करने वाले इस लड़के की कहानी हमें सिखाती है कि अगर इंसान चाह ले तो कुछ भी कर सकता है.
ये हैं साल 2018 के टॉपर शुभम गुप्ता जिन्हें आईएएस के बारे में पता तक नहीं था, लेकिन एक दिन पिता ने कहा कि बेटा कलेक्टर बन जाओ और उन्होंने ठान लिया कि IAS बनना है.
UPSC साल 2018 में शुभम की छटवीं रैंक आई थी और आज वे सांगली मिरज कुपवाड़ नगर निगम (Sangli Miraj Kupwad Municipal Corporation - SMKC) महाराष्ट्र नगर निगर कमिशनर के पद पर तैनात हैं.
शुभम गुप्ता एक वीडियो इंटरव्यू में कहा था, 'मैं जयपुर के एक मिडिल क्लास परिवार से हूं. पिता का छोटा-सा कारोबार था, जिसके सिलसिले में वो अफसरों से मिलते थे.'
'मैं भी पिता की दुकान में बैठता था, पापा ने जब मुझसे कलेक्टर बनने के लिए कहा, उसी दिन से मेरी यूपीएससी की जर्नी शुरू हो गई.'
वो बताते हैं कि बचपन में उनके घर की आर्थिक स्थिति इस हद तक कमजोर हुई कि पिता को जयपुर छोड़कर महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव जाना पड़ा.
वहां पिता ने जूते की छोटी दुकान खोली. दसवीं में और चुनौती का सामना करन पड़ा क्योंकि हमारे गांव के आसपास किसी स्कूल में हिंदी मीडियम या अंग्रेजी नहीं थी, वहां मराठी में पढ़ना था.
शुभम का कहना है कि तैयारी कर रहे लोगों को एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि जो आपने लक्ष्य बनाया है उसकाे पाने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप अपनी क्षमता के हिसाब से विषय चुनें.
12वीं की पढ़ाई करके शुभम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में बीकॉम में दाखिला लिया. यहां से एमकॉम करने के बाद उनका यूपीएससी का सफर 2015 में शुरू हुआ.
पढ़ाई के साथ तैयारी करके उन्होंने पहली बार प्रीलिम्स दिया तो वो फेल हो गए.
शुभम मानते हैं कि इस फेलियर के पीछे का कारण मेरी सीरियसनेस (गंभीरता) में कमी और खराब टाइम मैनेजमेंट था.
इसके बाद साल 2016 में उन्हें ऑल इंडिया 366 रैंक हासिल हुई लेकिन वो रुके नहीं. उनकी नियुक्ति सरकारी नौकरी में हुई, जिसकी तैयारी के दौरान भी वो समय निकालकर पढ़ते थे.
आखिरकार 2018 में उन्होंने यूपीएससी की ऑल इंडिया छठी रैंक हासिल कर ली.