वो मौके जब खामोश रहने में ही है भलाई, जानें क्या कहती है साइकोलॉजी

19 June 2024

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जिंदगी में कई मौके ऐसे होते हैं, जब खामोश रहना ही बेहतर फैसला होता है. हालांकि ये फैसला कर पाना मुश्किल होता है कि कब हमें चुप रहना है. आज हम उन मौकों की बात करेंगे, जब चुप रहना ही बेहतर होता है.

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गुस्से में कभी-कभी आपका भी खून खौलने लगता होगा या फिर कोई बात इतनी बुरी लग जाती होगी कि आंखों से आंसू बहने लगें. बस ये मौके ऐसे ही हैं, जब आपका चुप रहना ही बेहतर है.

गुस्से या नाराजगी में

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जब कोई करीबी शख्स अपना गुस्सा जाहिर कर रहा हो या दिल की बात कह रहा हो तो ऐसा लग सकता है कि उसे समझाया जाए, लेकिन साइकोलॉजी कहती है कि इस स्थिति में चुप रहकर सुनना ही बेहतर विकल्प होता है.

जब कोई गुस्से में हो

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जब आप मोलभाव कर रहे हों, तो बात के बीच में खामोश हो जाना अच्छा होता है. जब दाम ऊंचे हों और हम सही कीमत लगाने की कोशिश कर रहे हों तो कई तर्कों का देना ठीक है लेकिन बीच में चुप होना आपके पक्ष में काम करवा सकता है.

मोलभाव में

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जब कोई आपकी करीबी शोक में हो तो कुछ भी कह पाना मुश्किल होता है. आपको डर हो सकता है कि आपके शब्द अनजाने में तकलीफ न पहुंचा दें. ऐसे में चुप रहना सबसे बेहतर विकल्प है.

जब कोई शोक में हो

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कभी-कभी हम किसी बहस के बीच में होते हैं और हमें एहसास होता है कि हमारे पास वो फैक्ट्स नहीं हैं, जिनकी जरूरत है. ऐसी स्थिति में बिना फैक्ट्स के बहस करने से बेहतर चुप रहना है.

जब पूरे फैक्ट न हों

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