07 Feb 2024
पुलिस द्वारा आरोपी का सच जानने के लिए कई बार झूठ पकड़ने वाली मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. इस प्रोसेस को पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test) कहते हैं.
इस टेस्ट को लाई डिटेक्टर मशीन (Lie Detector Machine) टेस्ट भी कहते हैं. हालांकि, झूठ पकड़ने वाली मशीनों या नार्को टेस्ट की अदालत में उतनी महत्ता नहीं है.
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान यह देखा जाता है कि सवालों के जवाब देते समय इंसान झूठ बोल रहा है या सच. बता दें कि इंसान जब भी झूठ बोलता है, तब उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बदलता है.
पॉलीग्राफ मशीन पर टेस्ट के दौरान आमतौर सांस लेने की दर (Breathing Rate), नाड़ी की गति (Pulse Rate), ब्लड प्रेशर (Blood pressure), पसीना कितना निकल रहा (Perspiration) चेक किया जाता है.
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान मशीन के चार या छह पॉइंट्स को इंसान के सीने, उंगलियों से जोड़ दिया जाता है. फिर आरोपी से शुरुआत में कुछ सामान्य सवाल पूछे जाते हैं.
इस दौरान मशीन की स्क्रीन पर इंसान की हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, नाड़ी आदि पर नजर रखी जाती है. टेस्ट से पहले भी इंसान का मेडिकल टेस्ट किया जाता है.
जो इंसान किसी सवाल का झूठा जवाब देता है, तब उसके दिमाग से एक P300 (P3) सिग्नल निकलता है. ऐसे में उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.
इन्हें सामान्य दरों से मिलाया जाता है. तुरंत पता चल जाता है कि ये जवाब सच है या झूठ.
आरोपी व्यक्ति के सीने के चारों तरफ न्यूमोग्राफ ट्यूब (Pneumograph Tube) बांधी जाती हैं. बांह पर पल्स कफ (Pulse Cuff) लगाया जाता है. उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स (Lombroso Gloves) लगते हैं.
इन अंगों पर होने वाली छोटी-छोटी इलेक्ट्रिक हरकतों की वजह से मशीन में लगी पेन एक ग्राफ बनाती है. जिससे पता चलता है कि ये झूठ बोल रहा है या सच.