19 Aug 2025
Photo: AI Generated
एक वक्त था जब सुबह की शुरुआत अखबार की खड़खड़ाहट और हॉकर्स की आवाज से होती थी.
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हर गली-मोहल्ले में सुबह-सुबह साइकिल पर अखबारों का गट्ठर लिए दौड़ते हॉकर्स, हर घर में देश-दुनिया की हर अपडेट पहुंचाते थे.
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हर घर में बड़े-बुजुर्गों की सुबह की शुरुआत चाय और अखबार से होती थी. हॉकर जितने ज्यादा अखबार बांटते, उनकी उतनी ज्यादा कमाई होती थी.
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त्योहार, चुनाव, बड़ी ख़बरें सब उनके लिए बोनस कमाई लाते थे. क्योंकि ऐसे मौके पर अखबार ज्यादा बिकता है.
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इन हॉकर्स की कमाई भी अच्छी होती थी क्योंकि ज्यादातर घरों में एक नहीं, कई-कई अख़बार लगते थे, पेंफलेट (pamphlets) का पैसा भी मिलता था, त्योहार में बोनस भी.
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लेकिन अब तस्वीर काफी बदल चुकी है. लोगों के दिन की शुरुआत अब अखबार की जगह मोबाइल से होने लगी है. लोग अब उठते ही सबसे पहले फोन चेक करते हैं.
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टीवी चैनलों की बात करें तो हर पल ‘ब्रेकिंग न्यूज़’आती रहती है. ऐसे में अखबार का रोल धीरे-धीरे कम होने लगा.
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जिन हॉकर्स की रोज की आमदनी पहले सैकड़ों से हजार तक पहुंच जाती थी, वो अब मुश्किल से 100 रुपये तक सिमट जाती है. कई इलाके ऐसे भी हैं जहां हॉकर्स की कमाई आधी भी नहीं रही.
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पहले जहां एक हॉकर रोजाना 200-300 अखबार बेचकर 500-1000 रुपये तक कमा लेता था, वहीं अब कई जगह मुश्किल से 100-150 रुपये बच रहे हैं.
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महंगाई के साथ कई घरों में लोगों अखबार लगवाना बंद कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि इससे हॉकर्स की जेब पर काफी असर पड़ने लगा.
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इसके बाद भी कई हॉकर्स ने हार मानने की जगह अखबार के साथ-साथ दूध और मैगजीन भी बांटने लगे, कोई ऑनलाइन डिलीवरी करने लगा, तो कोई दूसरी नौकरियों में लग गया.
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न्यूजपेपर बांटने वाले हॉकर अरविंद कुमार कहते हैं कि अगर किसी अखबार की कीमत ₹5 से ₹8 रुपये है तो हॉकर को मिलने वाला हिस्सा ₹1.5 से ₹2.5 प्रति अखबार होगा.
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यानि हर अखबार से हॉकर की बचत ₹1 से ₹2 प्रति कॉपी होती है.
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यानि हर अखबार से हॉकर की बचत ₹1 से ₹2 प्रति कॉपी होती है.
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