28 Sept 2024
Credit: AI जनरेटेड
अगर आपको एक सप्ताह में कम से एक घंटे भी काम मिल रहा है और कमाई हुई है तो आप बेरोजगार नहीं हैं. दुनियाभर में रोजगार की यही परिभाषा है.
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ये परिभाषा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने तय की है. दुनियाभर की ज्यादातर सरकारें इसी को मानती हैं.
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हमारे देश में सबसे ज्यादा बेरोजगार पढ़े-लिखे युवा हैं. बल्कि दो दशकों में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई है.
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हाल ही में ILO की एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 2023 में भारत में जितने बेरोजगार थे, उनमें से 83% युवा थे.
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ILO की रिपोर्ट बताती है कि साल 2000 में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी 35.2% थी, जो 2022 तक बढ़कर 65.7% हो गई है.
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ILO का कहना था कि भारतीय युवाओं, खासकर ग्रेजुएट करने वालों में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है और ये समय के साथ लगातार बढ़ रही है.
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सिर्फ ILO ही नहीं, बल्कि पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) की रिपोर्ट भी इस ओर इशारा करती है कि भारत में पढ़े-लिखे बेरोजगार ज्यादा हैं.
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PLFS की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि जितनी ज्यादा पढ़ाई होगी, बेरोजगारी भी उतनी ज्यादा होगी.
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रिपोर्ट के अनुसार, निरक्षक- 0.2%, प्राइमरी तक-0.6%, 8वीं तक- 1.60%, 10वीं तक- 1.90%, 12वीं तक- 4.40%, डिप्लोमा/सर्टिफिकेट कोर्स-1.60%, ग्रेजुएट्स-13% और पीजी या उससे अधिक-12.40% बेरोजगारी है.
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कुछ जानकारों का मानना है कि अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोग अपना छोटा-मोटा काम शुरू कर देते हैं, जबकि पढ़े-लिखे अपनी योग्यता के अनुसार काम तलाशते हैं.
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दूसरी ओर ILO का दावा है कि भारत में नॉन-फार्म सेक्टर में ऐसी नौकरियां ही पैदा नहीं हो रहीं हैं, जहां पढ़े-लिखे और ग्रेजुएट युवाओं को जॉब मिल सके.
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