राज्यों में हुए मतदान के बाद और नतीजों से पहले एग्जिट पोल पर खूब चर्चाएं होती हैं. कौन हारेगा, कौन जीतेगा, किसका अनुमान सबसे सटीक, किसका अनुमान उलट साबित हुआ. चुनावी नतीजों से पहले इस तरह की कई चर्चाएं शुरू हो जाती हैं.
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लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि एग्जिट पोल में असल में क्या होता है और कैसे इससे राजनीतिक पार्टियों की हार-जीत का अनुमान लगाया जाता है. आइये बताते हैं.
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एग्जिट पोल में एक सर्वे किया जाता है, जिसमें वोटरों से कई सवाल किए जाते हैं. उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसे वोट दिया. ये सर्वे वोटिंग वाले दिन ही होता है.
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सर्वे करने वाली एजेंसियों की टीम पोलिंग बूथ के बाहर वोटरों से सवाल करती है. इसका एनालिसिस किया जाता है और इसके आधार पर चुनावी नतीजों का अनुमान लगाया जाता है. भारत में कई सारी एजेंसियां एग्जिट पोल करवाती हैं.
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एग्जिट पोल के नतीजों का इस्तेमाल राजनीतिक पार्टियों की हार-जीत का अनुमान लगाने के लिए होता है.
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एग्जिट पोल तैयार करने के लिए सर्वे करने वाले एजेंसी वोटरों का एक प्रतिनिधि नमूना चुन लेती हैं. ये नमूना आमतौर पर जनसंख्या के अलग-अलग आयु समूहों, लिंगों, और सामाजिक-आर्थिक वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है.
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एग्जिट पोल के नतीजों की सटीकता नमूने का आकार, नमूने का प्रतिनिधित्व, सवालों का निर्माण और सर्वेक्षण विधि पर निर्भर करती है. नमूना जितना ज्यादा बड़ा होगा. एग्जिट पोल भी उतना ही सटीक होगा.
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एग्जिट पोल के नतीजों को राजनीतिक दलों व मीडिया की तरफ से चुनावों की परिणामों का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. रिपोर्ट्स के अनुसार एग्जिट पोल के नतीजे हमेशा बिलकुल सटीक नहीं होते हैं. कई बार ये परिणाम चुनावों के नतीजों से अलग होते हैं.
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भारत में चुनावी सर्वे और एग्जिट पोल की शुरुआत 1980 के दशक से मानी जाती है. तब चार्टर्ड अकाउंटेंट से पत्रकार बने प्रणय रॉय ने वोटरों को मूड जानने के लिए ओपिनियन पोल किया था. शुरुआती सालों में एग्जिट पोल मैग्जीन में छपा करते थे.
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