30 Sep 2024
लेजेंडरी एक्टर मिथुन चक्रवर्ती को इंडियन सिनेमा में उनके योगदान के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.
ऐसे में आइए जानते हैं कि दादा साहेब फाल्के कौन थे और उनके नाम पर यह अवॉर्ड क्यों दिया जाता है.
दादा साहेब फाल्के उर्फ 'धुंदीराज' फाल्के को भारतीय सिनेमा का पितामाह कहा जाता है. उन्होंने सिनेमा की दुनिया में उस वक्त कदम रखा, जब सिनेमा का कोई अस्तित्व नहीं था.
दादासाहेब ने ही फिल्मों को नई पहचान दी. वहीं आज हर कलाकार का एक ही सपना है कि उसकी कला को एक दिन दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा जाए.
भारतीय फिल्म जगत के सबसे मजबूत स्तम्भ दादा साहेब फाल्के का निधन 16 फरवरी 1944 को हुआ था.
दादा साहेब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था. बचपन से ही उनमें कला के प्रति रुझान था. साल 1885 में उन्होंने मुंबई के सर. जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रवेश लिया.
1890 में पास होने के बाद फाल्के साहेब ने बड़ौदा के कला भवन में प्रवेश लिया, जहां उन्होंने मूर्तिशिल्प, इंजीनियरिंग, ड्राइंग, पेंटिंग और फोटोग्राफी का ज्ञान प्राप्त किया.
इसके बाद उन्होंने एक फोटोग्राफर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की. साल 1903 में वह भारतीय पुरातत्व विभाग में ड्राफ्ट्समैन के तौर पर काम करने लगे.
फिल्मों की दुनिया में उन्होंने रुख उस वक्त किया जब पहली बार ईसा मसीह के जीवन पर बनी एक फिल्म 'लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखी. उसके बाद फाल्के साहेब ने अपनी पहली मूक फिल्म (साइलेंट मूवी) बनाई. जिसका नाम 'राजा हरिश्चंद्र' है.
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कहा जाता है कि इस फिल्म को बनाने के लिए 15 हजार रुपये खर्च हुए थे. जो उस समय एक बहुत बड़ी राशि थी.
दादा साहेब के योगदान के लिए भारत सरकार की ओर से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, दिया जाता है.