05 April 2025
सीबीएसई 10वीं या 12वीं बोर्ड परीक्षा में पहले 60%-70% नंबर लाने वाले छात्रों का नाम हो जाता था, उनकी मिसाल दी जाती थी, लेकिन अब स्टूडेंटस 100% तक ले आते हैं.
पिछले साल (2024 में) कोलकाता के सब्यसाची लस्कर ने 10वीं में 500/500 यानी 100% नंबर प्राप्त किए थे और 12वीं में शाश्वत पाणिग्रही ने 99.2% अंक हासिल किए थे.
दरअसल, इसके पीछे एक वजह सीबीएसई की मॉडरेशन पॉलिसी है और मार्किंग स्कीम में बदलाव है.
सीबीएसई, छात्रों की परीक्षा तीन सेट में लेता है. तीनों का डिफिकल्ट लेवल अलग-अलग होता है, जिसमें एकरूपता लाने के लिए मॉडरेट किया जाता है. इसे मॉडरेशन पॉलिसी भी कहा जा सकता है.
सवालों के कठिन या आसान होने के पैमाने पर छात्र के कुल नंबरों में से निर्धारित प्रतिशत नंबर जोड़ना या घटना मॉडरेशन है. ताकि जांच प्रक्रिया एक जैसी हो.
इसमें टाइम लिमिट में हल किए गए सवाल के साथ-साथ तीनों सेट की डिफिकल्ट लेवल को ध्यान में रखकर मॉडरेट किया जाता है.
सीबीएसई की मॉडरेशन पॉलिसी के तहत 75 से 80 नंबर लाने वाले छात्र का स्कोर 90-95% तक हो जाता है.
एक्सपर्ट्स बताते हैं कि पहले की मार्किंग और अब की मार्किंग में काफी अंतर है. अब मार्किंग प्वॉइंट के आधार पर होती है.
1990 में पेपर पैटर्न में बदलाव के बाद छात्रों के नंबरों में काफी उछाल आया है. अब ऑब्जेक्टिव पैटर्न फॉलो करके कॉपियों की जांच की जाती है.
पहले किसी भी उत्तर के पूरे अंक नहीं दिए जाते थे. लेकिन अब अगर छात्र ने पांच नंबर के सवाल में पांच प्वॉइंट सही लिखे हैं तो उसे पूरे नंबर दिए जाते हैं. नंबर ज्यादा देने की भी गाइडलाइन है.
अब छात्रों को पहले से बता दिया जाता है कि किस चैप्टर में से ज्यादा नंबर के सवाल परीक्षा में पूछे जा सकते हैं.
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