22 July 2025
BY: Ashwin Satyadev
लैंड रोवर का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में एक लग्ज़री और पावरफुल एसयूवी की छवि उभर आती है. हर कार लवर इस दमदार एसयूवी की सवारी करना चाहता है.
Photo: Landrover.co.in
लेकिन उंची कीमत के चलते ज्यादातर लोग लैंड रोवर की शाही सवारी का मजा नहीं ले पाते हैं. भारत में इस एसयूवी की कीमत करोड़ों तक जाती है.
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लेकिन भारत में एक ऐसा गांव भी है जहां हर गली-कूचे में लैंड रोवर दौड़ती है. तो आइये मिलते हैं भारत के पूर्व में स्थित लैंड ऑफ लैंड-रोवर से.
Photo: Screengrab/Youtube/RangeRover
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में मानेभंज्यांग (Manebhanjyang) नाम का एक छोटा सा गांव है.
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समुद्र तल से तकरीबन 1,928 मीटर उंचाई पर बसे इस गांव में 40 से ज्यादा लैंड रोवर गाड़ियां हैं. इनमें से कुछ तो तकरीबन 60 से 70 साल पुरानी हैं.
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एक छोटे से गांव में इतनी ज्यादा लैंड रोवर गाड़ियों के चलते ही है इस गांव को 'विलेज ऑफ लैंड रोवर' यानी लैंड रोवर का गांव भी कहा जाता है.
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दार्जिलिंग शहर से 28 किमी दूर सिंगालीला राष्ट्रीय उद्यान के एंट्री प्वाइंट पर स्थित इस गांव के लिए पर्यटन ही आय का सबसे बड़ा साधन है.
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ब्रिटीश कार निर्माता कंपनी लैंड रोवर जिसका स्वामित्व अब टाटा ग्रुप के पास है, उसने कुछ सालों पहले इस गांव पर एक वीडियो भी जारी किया था.
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ये वीडियो मानेभंजंग के निवासियों द्वारा अपनी आजीविका के लिए संदकफू (Sandakphu) तक की 31 किलोमीटर की शानदार यात्रा को दर्शाता है.
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कहीं उंची चढ़ाई तो अचानक गिरती ढलान, चट्टानों से भरे खतरानाक रास्ते और खतरनाक मौसम में, लगभग 3,636 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस पहाड़ी गाँव संदकफू की यात्रा बेहद ही अनोखी है.
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लेकिन दुर्गम इलाकों से गुजरते हुए संदकफू तक की रोजाना की यात्रा में ये लैंड रोवर गाड़ियां बेहद काम आती हैं.
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ये गाड़ियां आज के मॉडलों की तरह कॉम्लीकेटेड नहीं हैं और यही इनकी सबसे बड़ी खूबी है. फोर-व्हील ड्राइविंग सिस्टम से लैस ये लैंड रोवर स्थानीय लोगों के लिए एक इमोशन बन चुकी हैं.
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मानेभंज्यांग गांव के नाम के पीछे भी एक अर्थ छिपा है. 'भंज्यांग' का मतलब होता है एक ऐसी जगह जहां सभी रास्ते (सड़कें) आकर मिलती हैं.
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जाहिर है कि लैंड रोवर के प्रति यहां के लोगों का प्रेम किस 'भंज्यांग' से कम नहीं है. अतीत, पहाड़ और गाड़ी के प्रेम का ये मेल शायद की कहीं देखने को मिले.
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Video: YouTube/Range Rover