यह महिला न होती तो आज Mercedes का वजूद ही न होता! पढें ये अनोखी कहानी

26 October 2024

BY: Ashwin Satyadev

एक बहुत ही पुरानी कहावत है कि, "हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है." और दुनिया की लग्ज़री कार कंपनी मर्सिडीज़ बेन्ज़ के लिए तो ये काफी हद तक सही भी है.

मर्सिडीज का वो थ्री-प्वाइंटेड स्टार इस महिला के दम पर ही चमक रहा है. जिसके बिना शायद कंपनी कभी अस्तित्व में ही नहीं आती.

हम बात कर रहे हैं बर्था रिंगर बेंज (Bertha Ringer Benz) की, इनके लिए ये कहना भी गलत नहीं होगा कि, बर्था बेन्ज ने ही दुनिया को पहली बार कारों से परिचित कराया था.

कार्ल फ्रेडरिक बेन्ज़ (Carl Benz) ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में अपने विशेष योगदान के लिए जाने जाते हैं. जर्मनी में जन्मे कार्ल बेंज पेशे से एक ऑटोमोटिव इंजीनियर और इंजन डिजाइनर थे.

साल 1885 में उन्होनें अपनी पहली कार के तौर पर बेन्ज पेटेंट मोटर वैगन को तैयार किया था. लेकिन वो इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि, ये कार अभी रोड के लिए तैयार है या नहीं.

कार्ल को भले ही अपनी कार पर संशय था लेकिन उनकी पत्नी बर्था बेन्ज को कार्ल की कार पर पूरा भरोसा था. इसीलिए उन्होनें बिना कार्ल को बताए एक अहम फैसला लिया.

जब कार्ल बेंज ने अपनी पहली कार बनाई तो वह इसे बेचने में सफल नहीं हो सके. कार्ल बेंज इस बात से निराश थे कि उनकी कार जो तकरीबन 3 साल से बाजार में थी, बिक ही नहीं रही थी.

बर्था बेंज का मानना था कि कार नहीं बिकने का कारण यह था कि वास्तव में किसी ने किसी को इसका इस्तेमाल करते नहीं देखा था. इसलिए उसने इसे स्वयं चलाने का निर्णय लिया.

साल 1888 में एक सुबह बर्था उठी और बिना कार्ल बेन्ज को बताए अपने दोनों बेटों यूजेन और रिचर्ड के साथ एक ऐतिहासिक यात्रा पर निकल गई.

सड़क पर 3 पहियों वाली इस मशीन को दौड़ता देख हर कोई हैरान था. लोगों की हैरानी तब और बढ़ जाती जब उनकी नजर बर्था पर पड़ती.

क्योंकि लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि सड़क पर दौड़ती इस मशीन, जिसे कार (CAR) कहते हैं उसके स्टीयरिंग व्हील का कंट्रोल एक महिला के हाथों में था.

बर्था बेंज उस दिन न केवल एक कार चला रही थी, बल्कि अपने विश्वास के बूते वो भविष्य की एक बड़ी इंडस्ट्री को रास्ता दिखा रही थी.

उस दिन बर्था ने मैनहेम से फॉर्ज़हेम तक 106 किलोमीटर की दूरी तय की. इस यात्रा से पहले पेटेंट वेगन कार को केवल टेस्टिंग के लिए छोटी-मोटी दूरी तक ही चलाया गया था.

लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं था. रास्ते में कार में कुछ तकनीकी खामी आई, जिसे बर्था ने खुद ही ठीक किया. इसके बाद कार का फ्यूल (लिगोरिन) भी खत्म हो गया था.

लिगोरिन खरीदने के लिए बर्था को एक केमिस्ट के पास जाना पड़ा था. ये फार्मेसी विस्लोच (Wiesloch) नामक शहर में थी और इसे दुनिया का पहला फ्यूल स्टेशन भी माना जाता है.

बर्था के एक फैसले और ऐतिहासिक यात्रा ने दुनिया भर में इस कार को मशहूर कर दिया. और आज मर्सिडीज़ बेन्ज़ कितनी बड़ी कार कंपनी बन चुकी है ये हम सभी जानते हैं.