12 March 2024
BY: Ashwin Satyadev
एयरबैग, एक बेहद ही जरूरी सेफ्टी फीचर है जिसने दुनिया भर में अब तक न जाने कितनी जिंदगियों को बचाया है. सरकार भी समय-समय पर वाहनों में एयरबैग की संख्या बढ़ाने की वकालत करती रही है.
हाल के दिनों में एक्सीडेंट के कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं, जिन्होनें इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ा है कि, क्या सीट-बेल्ट न लगाने पर कारों में एयरबैग काम नहीं करता है?
इसके लिए हमने टाटा मोटर्स के चीफ प्रोडक्शन ऑफिसर, मोहन सावरकर से बात की और यह समझने की कोशिश की कि, आखिर सीट-बेल्ट और एयरबैग के बीच क्या कनेक्शन है?
एयरबैग आमतौर पर पॉलिएस्टर की तरह की मजबूत टेक्सटाइल या कपड़े से बना एक गुब्बारे जैसा कवर होता है. इसे ख़ास मैटेरियल से टेनेसिल स्ट्रेंथ (कपड़े की मजबूती) के लिए डिज़ाइन किया जाता है.
ये कार में किसी सेफ्टी कुशन की तरह काम करता है, जैसे ही वाहन से कोई इम्पैक्ट या टक्कर होती है ये सिस्टम एक्टिव हो जाता है और ओपन होकर यात्री की सुरक्षा करता है.
मोहन सावरकर बताते हैं कि, 'यदि कोई कार 50-60 किमी/घंटा की रफ्तार से चल रही है और एक्सीडेंट होता है तो उस पर आमतौर पर कार में बैठे यात्रियों पर 40 गुना ग्रेविटी फोर्स आता है.'
यदि कार में बैठे यात्री का वजन यदि 80 किग्रा है, और ग्रेविटी 40 होगी तो ये बढ़कर (80x40)= 3200 किग्रा हो जाएगा. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि G-फोर्स बढ़ने से खतरा कितना बढ़ जाता है.
ग्रेविटेशनल फोर्स, तेज गति और झटके के बीच होने वाले नुकसान से बचाने के लिए ही AIRBAG की जरूरत पड़ती है.
सावरकर कहते हैं कि, "सीट-बेल्ट लगे होने के बावजूद पैसेंजर की बॉडी आगे डैशबोर्ड की तरफ जाएगी, तो वो ज्यादा न जा पाए और डैशबोर्ड से न टकराए इसके लिए एयरबैग की जरूरत होती है.
यही कारण हैं कि, सीट-बेल्ट को हमेशा प्राइमरी रिस्ट्रेंट सिस्टम (PRS) कहा जाता है और 'एयरबैग' को हमेशा सप्लीमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम (Supplementary Restraint System) कहा जाता है."
आपको याद होगा कि, कारों के डैशबोर्ड या स्टीयरिंग व्हील पर (SRS Airbag) लिखा होता है. इसके पीछे यही कारण होता है क्योंकि, इसे सप्लीमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम कहा जाता है.
जैसे ही दुर्घटना होती है, SRS सिस्टम में पहले से ही इंस्टॉल किया गया नाइट्रोजन गैस एयरबैग में भर जाता है. ये प्रक्रिया कुछ मिली सेकंड में होती है और एयरबैग गैस से खुल जाता है.
सावरकर कहते हैं कि, "नहीं ऐसा नहीं है, एयरबैग डिप्लॉय होगा लेकिन इससे यात्री को ज्यादा चोट आएगी. यदि सीट-बेल्ट लगाया जाएगा तो यात्री को कम से कम चोट लगने की संभावना रहती है."
"बहुत ही लो-स्पीड पर एयरबैग डिप्लॉय नहीं होता है, इसके लिए सिस्टम में एक स्पीड निश्चित की गई होती है, यानी कि एयरबैग तभी खुलेगा जिस स्पीड पर टक्कर होने पर यात्री को चोट पहुंच सकती है.
सावरकर कहते हैं कि, "यदि मैं गलत नहीं हूं तो आमतौर कार की स्पीड 30 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा होनी चाहिए, हालांकि ये एकदम एक्जेक्ट फीगर नहीं है."