18 Aug 2025
Photo : AI Generated
सांझी कला उत्तर प्रदेश के मथुरा और वृंदावन से जुड़ी पारंपरिक कला है.
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इसमें कागज़ को बारीक-बारीक काटकर (पेपर कटिंग) श्रीकृष्ण की लीलाओं, मंदिरों और धार्मिक दृश्यों की झलक बनाई जाती है.
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इसे ज़मीन, दीवार या रंगोली जैसी जगहों पर सजाया जाता है.
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इसे ज़मीन, दीवार या रंगोली जैसी जगहों पर सजाया जाता है.
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इसे श्रीकृष्ण से जुड़ी परंपरा माना जाता है कि राधा जी खुद श्रीकृष्ण के स्वागत के लिए सांझी सजाती थीं.
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यह कला आमतौर पर शाम (सांझ) को बनाई जाती है, इसी वजह से इसका नाम पड़ा "सांझी".
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सांझी कला बनाने के लिए पहले मोटा रंगीन या साधारण कागज़ लिया जाता है. उस पर पेंसिल से डिज़ाइन (जैसे – श्रीकृष्ण की लीलाएं, फूल-पत्ते, मंदिर आकृतियां) बनाई जाती हैं.
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फिर इसे तेज़ ब्लेड या खास चाकू से कागज़ को बारीकी से काटा जाता है. डिज़ाइन इतनी महीन होती है कि उसमें जाली जैसी खूबसूरती दिखती है.
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ब्रज (बरसाना और आस-पास का ब्रज क्षेत्र) की यह कला स्थानीय संस्कृति और ब्रज की परंपरा का अहम हिस्सा है.
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मथुरा-वृंदावन में खासकर भाद्रपद महीने में सांझी उत्सव मनाया जाता है, जहां इस कला की अद्भुत झलक देखने को मिलती है.
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